________________ 98] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (11) विशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से अविशुद्धलेश्यावाले देवादि को." (12) विशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से विशुद्धलेश्यावाले देवादि को...... अविशुद्धलेश्यावाले देव विभंगज्ञानी होते हैं, इसलिए पूर्वोक्त 6 विकल्पों में उक्त देव मिथ्यादृष्टि होने के कारण देव-देवी आदि को नहीं जान-देख सकते। तथा सातवें-पाठवें विकल्प में उक्त देव अनुपयुक्तता के कारण जान-देख नहीं पाते / किन्तु अन्तिम चार विकल्पों में उक्त देव एक तो, सम्यग्दृष्टि हैं, दुसरे उनमें से 8वें, 103 विकल्पों में उक्त देव उपयुक्त भी है, तथा 11, १२वें विकल्प में उक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त में उपयुक्तपन सम्यग्दृष्टि एवं सम्यग्ज्ञान का कारण है / इसलिए पिछले चारों विकल्प वाले देव, देवादि को जानते-देखते हैं।' ॥छठा शतक : नवम उद्देशक समाप्त / / 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 284 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचनयुक्त) भा. 2, पृ. 1066 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org