________________ छठा शतक : उद्देशक-७] [87 [27 प्र] भगवन् ! आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [27 उ.] गौतम ! प्रायुष्यबन्ध छह प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है-(१) जातिनामनिधत्तायु, (2) गतिनामनिधत्तायु, (3) स्थितिनामनिधत्तायु, (4) अवगाहनानामनिधत्तायु, (5) प्रदेशनामनिधत्तायु और (6) अनुभागनामनिधत्तायु / 28. एवं दंडओ' जाव वेमाणियाणं। [17] यावत् वैमानिकों तक दण्डक कहना चाहिए। 29. जीवा णं भंते ! कि जातिनामनिहत्ता गतिनामनिहत्ता जाव अणुभागनामनिहत्ता ? गोतमा ! जातिनामनिहत्ता वि जाव अणुभागनामनिहत्ता वि / [26 प्र.] भगवन् ! क्या जीव जातिनामनिधत्त हैं ? गतिनामनिधत्त हैं ? अथवा यावत् अनुभागनामनिधत हैं ? [29 उ.] गौतम ! जीव जातिनामनिधत्त भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्त भी हैं / 30. दंडो जाव वेमाणियाणं / [30] यह दण्डक यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए / 31. जीवा णं भंते ! कि जातिनामनिहिताउया जाव अणुभागनामनिहित्ताउया ? गोयमा! जातिनामनिहत्ताउया वि जाव अणुभागनामनिहित्ताउया वि / (31 प्र.] भगवन् ! क्या जीव जातिनामनिधत्तायुष्क हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायुष्क हैं ? [31 उ.] गौतम ! जीव, जातिनामनिधत्तायुष्क भी हैं, यावत् अनुभागनामनिधत्तायुष्क भी हैं। 32. दंडअो जाय वेमाणियाणं / [32] यह दण्डक यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। 33. एवमेए दुवालस दंडगा भाणियव्वा-जीवा णं भंते ! कि जातिनामनिहत्ता 1, जातिनामनिहत्ताउया० 2, जीवा णं भते ! कि जातिनामनिउत्ता 3, जातिनामनि उत्ताउया० 4, जातिगोयनिहत्ता 5, जातिगोयनिहत्ताउया 6, जातिगोत्तनिउत्ता 7, जातिगोतनिउत्ताउया 8, जातिणामगोत्तनिहत्ता 6, जातिणामगोयनिहत्ताउया 10, जातिणामगोयनि उत्ता 11, जीवा णं भंते ! कि जातिनामगोनिउत्ताउया जाव अणुभागनामगोतनिउत्ताउया 12 ? गोतमा ! जातिनामगोयनिउत्ताउया वि जाव अणुभागनामगोत्तति उत्ताउया वि। 1. 'जाव' पद से नै रयिक से लेकर वैमानिकपर्यन्त दण्डक समझे। 2. 'जाव' पद से 'ठिति-ओगाहणा-पएस' आदि पद निहत्त' पदान्त समझ लेने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org