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________________ 72] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्राशय-जो जोव मारणान्तिक समुद्घात करके नरकावासादि उत्पत्तिस्थान पर जाते हैं, उस दौरान उनमें से कोई एक जीव, जो समुद्घात-काल में ही मरणशरण हो जाता है, वह वहाँ जाकर वहाँ से अथवा समुद्धात से निवृत्त होकर वापस अपने शरीर में आता है और दूसरी बार मारणान्तिक समुद्घात करके पुन: उत्पत्तिस्थान पर प्राता है; फिर प्राहारयोग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है, तत्पश्चात् ग्रहण किये हुए उन पुद्गलों को पचा कर उनका खलरूप और रसरूप विभाग करता है। फिर उन पुद्गलों से शरीर की रचना करता है। जीव लोकान्त में जाकर उत्पत्तिस्थान के अनुसार अंगुल के असंख्येयभागमात्र आदि क्षेत्र में समुद्धात द्वारा उत्पन्न होता है। यद्यपि जीव लोकाकाश के असंख्येयप्रदेशों में अवगाहन करने के स्वभाव वाला है, तथापि एकप्रदेशश्रेणी के असंख्येय प्रदेशों में उसका अवगाहन संभव नहीं है, क्योंकि जीव का ऐसा ही स्वभाव है। इसीलिए यहाँ मूलपाठ में कहा गया है-'एगपदेसियं सेदि मोतूण' अर्थात्-एकप्रदेशवाली श्रेणी को छोड़ कर / ' कठिन शब्दों के अर्थ पडिनियत्तति-वापस लौटता है / लोयंत = लोक के अन्त में जाकर / पाउणिज्जा प्राप्त करता है। // छठा शतक : छठा उद्देशक समाप्त // 1. (क) भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. 2, पृ. 1030 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 273-274 2. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 273 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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