________________ छठा शतक : उद्देशक-५] [67 होने वाले जीव नियमत: भव्य होते हैं और एक भवपश्चात् मोक्षगामी होते हैं। इसलिए देवरूप से यहाँ अनेक बार या अनन्त बार उत्पन्न नहीं हुए।' लोकान्तिक विमानों का संक्षिप्त निरूपण-जीवाभिगमसूत्र एवं प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार इनके विमान वायुप्रतिष्ठित हैं / इनका बाहल्य (मोटाई) 2500 योजन व ऊँचाई 700 योजन होती है। जो विमान प्रावलिकाप्रविष्ट होते हैं, वे वृत्त (गोल) व्यंस (त्रिकोण), या चतुरस्र (चतुष्कोण) होते हैं, किन्तु ये विमान प्रालिकाप्रविष्ट नहीं होते, इसलिए इनका आकार नाना प्रकार का होता है। इन विमानों का वर्ण लाल, पीला और श्वेत होता है, ये प्रकाशयुक्त, दृष्ट वर्ण-गन्धयुक्त, एवं सर्वरत्नमय होते हैं। इन विमानों के निवासी देव समचतुरस्र-संस्थानवाले, पद्मलेश्यायुक्त एवं सम्यग्दृष्टि होते हैं। / छठा शतक : पंचम उद्देशक समाप्त / / 1. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 272 2. (क) जीवाभिगमसूत्र द्वितीय वैमानिक उद्देशक, पृ. 394 से 406 तक (दे. ला.) (ख) प्रज्ञापनासूत्र दूसरा स्थानपद, ब्रह्मलोकदेवस्थानाधिकार, पृ. 103 (प्रा. स.) (ग) भगवतीसून अ. वत्ति, पनांक 272 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org