________________ 56] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 9. [1] अस्थि णं भंते ! तमुकाए बादरे थणियसद्दे, बायरे विज्जुए ? हंता, अस्थि / [9-1 प्र.) भगवन् ! तमस्काय में क्या बादर स्तनित शब्द (स्थूल मेघगर्जन) है, क्या बादर विद्युत् है ? [9-1 उ.] हाँ, गौतम ! है। [2] तं भंते ! कि देवो पकरेति 3 ? तिण्णि वि पकरेंति। [9-2 प्र.] भगवन् ! क्या उसे देव करता है, असुर करता है या नाग करता है ? [9-2 उ.] गौतम ! तीनों ही करते हैं / (अर्थात्-देव भी करता है, असुर भी करता है और नाग भी करता है।) 10. अस्थि णं भंते ! तमकाए बादरे पुढविकाए, बादरे अगणिकाए ? णो तिण8 सम?', णन्नत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं / [10 प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय है और बादर अग्निकाय है ? [10 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह निषेध विग्रहगतिसमापन के सिवाय समझना / (अर्थात्--विग्रहगतिसमापन्न बादर पृथ्वी और बादर अग्नि हो सकती है / ) 11. अस्थि णं भ ते ! तमुकाए चंदिम-सूरिय-गहगण-गक्खत्त-तारारूवा? णो तिण8 सम8. पलिपस्सतो पुण अत्यि।। [11 प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? [11 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वे (चन्द्रादि) तमस्काय के परिपार्श्व में (आसपास) हैं भी। 12. अस्थि णं भते ! तमकाए वंदामा ति वा, सूरामा ति वा? णो ति? समवे, कादूसणिया पुण सा / / [12 प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा की आभा (प्रभा) या सूर्य को प्राभा है ? [12 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; किन्तु तमस्काय में (जो प्रभा है, वह) कादूषणिका (अपनी आत्मा को दूषित करने वाली ) है। 13. तमुक्काए णं भते ! केरिसए वष्णेणं पण्णते ? गोयमा ! काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसजणणे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वगेणं पण्णत्ते / देवे विणं अत्थेगतिए जे णं तप्पढमताए पासित्ताणं खुभाएज्जा, अहे णं अभिसमागच्छेज्जा, ततो पच्छा सोहं सोहं तुरियं तुरियं खिप्पामेव वीतीवएज्जा। - [13 प्र.] भगवन् ! तमस्काय वर्ण से कैसा है ? [13 उ.] गौतम ! तमस्काय वर्ण से काला, काली कान्ति बाला, गम्भीर (गहरा), रोमहर्षक (रोंगटे खड़े करने वाला), भीम (भयंकर), उत्त्रासजनक और परमकृष्ण कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org