________________ 26] [ ध्याख्याज्ञप्तिसूत्र [2-6 उ.] गौतम ! असुरकुमारों के अभिलाप में, अर्थात्-नारकों के स्थान पर 'असुरकुमार' शब्द का प्रयोग करके अचलित कर्म की निर्जरा करते हैं, यहाँ तक सभी पालापक नारकों के समान ही समझने चाहिए। नागकुमार चर्चा (3.1) नागकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णता? गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूणाइ दो पलिप्रोवमाई। [3.1 प्र. हे भगवन् ! नागकुमार देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [3.1 उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन = कुछ कम दो पल्योपम की है। (3.2) नागकुमारा णं भंते ! केवइकालस्स प्राणमंति वा 4 ? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं मुहत्तपुहत्तस्स' प्राणमंति वा 4 // [3.2 प्र.] हे भगवन् ! नागकुमार देव कितने समय में श्वास लेते हैं और छोड़ते हैं ? [3.2 उ.] गौतम ! जघन्यतः सात स्तोक में और उत्कृष्टतः मुहूर्त-पृथक्त्व में (दो मुहूर्त से लेकर नौ मुहूर्त के अन्दर किसी भी समय) श्वासोच्छ्वास लेते हैं। (3.3) नागकुमारा णं भंते ! प्राहारट्टी? हंता, गोयमा ! पाहारट्ठो। [3.3 प्र.] भगवन् ! क्या नागकुमारदेव आहारार्थी होते हैं ? [3.3 उ.] हाँ, गौतम ! वे आहारार्थी होते हैं / (3.4) नागकुमाराणं भंते ! केवइकालस्स आहारट्ठ समुष्पज्जइ ? गोयमा ! नागकुमाराणं दुविहे पाहारे पण्णत्ते / तं जहा-माभोगनिवत्तिए य अणाभोगनिवत्तिए य / तत्थ णं जे से अणाभोगनिव्वत्तिए से अणुसमयं अविरहिए प्राहार? समुष्पज्जेइ, तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए, से जहन्नणं च उत्थभत्तस्स, उक्कोसेणं दिवस-पुहत्तस्स आहारट्रे समुप्पज्जइ। सेसं जहा. असुरकुमाराणं जाव चलियं कम्मं निज्जरेंति, नो प्रचलियं कम्म निज्जरेति / [3.4 प्र.] भगवन् ! नागकुमार देवों को कितने काल के अनन्तर अाहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? [3.4 उ.] गौतम ! नागकुमार देवों का आहार दो प्रकार का कहा गया है-आभागनिर्वत्तित और अनाभोग-नित्तित / इन में जो अनाभोग-निर्वत्तित आहार है, वह प्रतिसमय विरहरहित (सतत) होता है; किन्तु आभोगनिर्वत्तित आहार को अभिलाषा जघन्यतः चतुर्थभक्त {एक अहोरात्र) के पश्चात् और उत्कृष्टतः दिवस-पृथक्त्व (दो दिवस से लेकर नौ दिवस तक), के बाद उत्पन्न होती 1 'पृथक्त्व' शब्द दो से लेकर नौ तक के अर्थ में सिद्धान्त में प्रसिद्ध है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org