________________ 10] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [7-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [7-2 उ.] गौतम ! नैरयिक जीवों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं, जैसे कि मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण / उनके ये चारों ही प्रकार के करण अशुभ होने से वे (नैरयिक जीव) करण द्वारा असातावेदना वेदते हैं, अकरण द्वारा नहीं। इस कारण से ऐसा कहा गया है कि नै रयिक जीव करण से असातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं। 8. [1] असुरकुमारा गं कि करणतो, प्रकरणतो ? गोयमा ! करणतो, नो प्रकरणतो / [8-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव क्या करण से साताबेदना वेदते हैं, अथवा अकरण से ? [8-1 उ.] गौतम ! असुरकुमार करण से सातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं / [2] से केपट्टणं० ? गोयमा ! असुरकुमाराणं चउक्विहे करणे पणते, तं जहा-मणकरणे वइकरणे कायकरणे कम्मकरणे। इच्चेएणं सुभेणं करणेणं प्रसुरकुमारा णं करणतो सायं वेदणं वेदेति, नो अकरणतो। [8-2 प्र. भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? [8-2 उ.] गौतम ! असुरकुमारों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं / यथा--मनकरण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण / असुरकुमारों के ये चारों करण शुभ होने से वे (असुर. कुमार) करण से सातावेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण से नहीं / 6. एवं जाव थणियकुमारा। [6] इसी तरह (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए / 10. पुढविकाइयाणं एस चेव पुच्छा। नवरं इच्चेएणं सुभासुभेणं करणेणं पुढचिकाइया करणतो बेमायाए वेदणं वेति, नो प्रकरणतो। [10 प्र.] भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव करण द्वारा वेदना वेदते हैं, या प्रकरण द्वारा ? [10 उ. गौतम ! पृथ्वी कायिक जीव करण द्वारा वेदना बेदते हैं, किन्तु अकरण द्वारा नहीं / विशेष यह है कि इनके ये करण शुभाशुभ होने से ये करण द्वारा विमात्रा से (विविध प्रकार से) वेदना वेदते हैं; किन्तु प्रकरण द्वारा नहीं / अर्थात--पृथ्वीकायिक जीव शुभकरण होने से सातावेदना वेदते हैं और कदाचित् अशुभ करण होने से असाता बेदना वेदते हैं / 11. पोरालियसरीरा सम्वे सुभासुभेणं वेमायाए / [11] औदारिक शरीर वाले सभी जीव अर्थात्-पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय और मनुष्य, शुभाशुभ करण द्वारा विमात्रा से वेदना (कदाचित् सातावेदना और कदाचित असातावेदना) वेदते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org