________________ वियाहपण्णत्तिसुत्तं (भगवईसुत्तं) विषय-सूची छठा शतक 3-105 प्राथमिक छठे शतकगत उद्देशकों का संक्षिप्त परिचय छठे शतक की संग्रहणी गाथा प्रथम उद्देशक-वेदना (सूत्र 2-14) ____ महावेदना एवं महानिर्जरा युक्त जीवों का निर्णय विभिन्न दृष्टान्तों द्वारा 5, महावेदना और महानिर्जरा की व्याख्या 8, क्या नारक महावेदना और महानिर्जरा वाले नहीं होते ? , विशोध्य कर्म के चार विशेषणों की व्याख्या 6, चौवीस दण्डकों में करण की अपेक्षा साता-असाता-वेदना की प्ररूपणा 6, चार करणों का स्वरूप 11, जीवों में वेदना और निर्जरा से संबन्धित चतुभंगी का निरूपण 11, प्रथम उद्देशक को संग्रहणी गाथा 12 / द्वितीय उद्देशक-प्राहार (सूत्र 1) 13-14 जीवों के प्राहार के सम्बन्ध में अतिदेशपूर्वक निरूपण 13, प्रज्ञापना में वणित आहार संवन्धी वर्णन की संक्षिप्त झांकी 13 / तृतीय उद्देशक महाश्रय (सूत्र 1-26) तृतीय उद्देशक की संग्रहणी गाथायें 15, प्रथम द्वार–महाकर्मा और अल्पकर्मा जीव के प्रदगल-बध-भेदादि का दृष्टान्तद्वय पूर्वक निरूपण 15, महाकर्मादि की व्याख्या 17, द्वितीय द्वारवस्त्र में पुद्गलोपचयवत् समस्त जीवों के कर्मपुद्गलोपचय प्रयोग से या स्वभाव से ? एक प्रश्नोत्तर 18, तृतीय द्वार–वस्त्र के पुद्गलोपचयवत् जीवों के कर्मोपचय की सादि-सान्तता आदि का विचार 16, जीवों का कर्मोपचय सादि-सान्त, अनादि-सान्त एवं अनादि-अनन्त क्यों और कैसे ? 20, तृतीय द्वार–वस्त्र एवं जीवों की सादि-सान्तता आदि चतुभंगी प्ररूपणा 21, नरकादिगति की सादिसान्तता 22, सिद्ध जीवों की सादि-अनन्तता 22, भवसिद्धिक जीवों की अनादि-सान्तता 22, चतुर्थ द्वार---अष्ट कर्मों की बन्धस्थिति आदि का निरूपण 22, बंधस्थिति 23, कर्म की स्थिति: दो प्रकार को 24, प्रायुष्यकर्म के निषेककाल और अबाधाकाल में विशेषता 24, वेदनीयकर्म की स्थिति 24, पांचवें से उन्नीसवें तक पन्द्रह द्वारों में उक्त विभिन्न विशिष्ट जीवों की अपेक्षा से कर्मबन्ध-प्रबन्ध का निरूपण 24, अष्टविधकर्मबन्धक-विषयक प्रश्न क्रमशः पन्द्रह द्वारों में [17] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org