________________ पंचम शतक : उद्देशक-९ [ 513 [4-1 प्र.] भगवन् ! नरयिकों के (निवासस्थान में) उद्योत होता है, अथवा अन्धकार होता है ? [4-1 उ.] गौतम ! नैरयिक जीवों के (स्थान में) उद्योत नहीं होता, (किन्तु) अन्धकार होता है। [2] से केणढणं० ? गोतमा ! नेरइयाणं असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे, से तेण?णं० / [4-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से नैरयिकों के (स्थान में) उद्योत नहीं होता, अन्धकार होता है ? [4-2 उ.] गौतम ! नैरयिक जीवों के अशुभ पुद्गल और अशुभ पुद्गल परिणाम होते हैं, इस कारण से वहाँ उद्योत नहीं, किन्तु अन्धकार होता है / 5. [1] असुरकुमाराण मते ! कि उज्जोते, अंधकारे ? गोयमा ! असुरकुमाराणं उज्जोते, नो अंधकारे / [5-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के क्या उद्योत होता है, अथवा अन्धकार होता है ? {5.1 उ.] गौतम ! असुरकुमारों के उद्योत होता है, अन्धकार नहीं होता / [2] से केपट्ठणं? गोतमा ! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला, सुभे पोग्गलपरिणामे, से तेण?णं एवं बुच्चतिः / [5-2 प्र.] भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है (कि असुरकुमारों के उद्योत होता है, अन्धकार नहीं ?) [5-2 उ] गौतम ! असुरकुमारों के शुभ पुद्गल या शुभ परिणाम होते हैं। इस कारण से कहा जाता है कि उनके उद्योत होता है, अन्धकार नहीं होता। [3] एवं जाव' थणियाणं / [5-3] इसी प्रकार (नागकुमार देवों से लेकर) स्तनितकुमार देवों तक के लिए कहना चाहिए / 6. पुढदिकाइया जाव तेइंदिया जहा नेरइया / [6] जिस प्रकार नैरयिक जीवों के (उद्योत-अन्धकार के) विषय में कथन किया, उसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों से लेकर त्रीन्द्रिय जीवों तक के विषय में कहना चाहिए / 1. 'जाव' पद नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक का सूचक है। 2. यहाँ जाव पद पृथ्वीकायादि पाँच स्थावर से लेकर द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय जीवों तक का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org