________________ 512 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रचित्त-मीसियाई दवाई जीवा ति य अजीवा ति य 'नगरं रायगिह' ति पणुच्चति, से तेण?णं तं चेव / [2-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से (पृथ्वी को राजगृहनगर कहा जाता है, "यावत् सचित्त अचित्त-मिश्र द्रव्यों को राजगृहनगर कहा जाता है ?) [2-2 उ.] गौतम ! पृथ्वी जीव-(पिण्ड) है और अजीव-(पिण्ड) भी है, इसलिए यह राजगृह नगर कहलाती है, यावत् सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य भी जीव हैं, और अजीव भी हैं, इसलिए ये द्रव्य (मिलकर) राजगृहनगर कहलाते हैं / हे गौतम ! इसी कारण से पृथ्वी आदि को राजगृहनगर कहा जाता है / विवेचन-राजगृह के स्वरूप का निर्णय : तात्त्विक दृष्टि से-श्री गौतमस्वामी ने प्रायः बहुत से प्रश्न श्रमण भगवान् महावीर से राजगृह में पूछे थे, भगवान् के बहुत-से विहार भी राजगृह में हुए थे / इसलिए नौवें उद्देशक के प्रारम्भ में राजगह नगर के स्वरूप के विषय में तात्त्विक दृष्टि से पूछा गया है। . निष्कर्ष-चूकि पृथ्वी आदि के समुदाय के बिना तथा राजगह में निवास करने वाले मनुष्य पशु-पक्षी आदि के समूह के बिना 'राजगृह' शब्द की प्रवृत्ति नहीं हो सकती, अतः राजगह जीवाजीव रूप है।' चौबीस दण्डक के जीवों के उद्योत-अन्धकार के विषय में प्ररूपरणा-~ 3. [1] से नणं भ ते दिया उज्जोते, राति अंधकारे ? हंता गोयमा ! जाव अंधकारे / [3-1 प्र.] हे भगवन् ! क्या दिन में उद्योत (प्रकाश) और रात्रि में अन्धकार होता है ? [3-1 उ.] हाँ. गौतम ! दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है। / 2] से केपट्टणं०? गोतमा ! दिया सुभा पोग्गला, सुभे पोग्गलपरिणामे, रति असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे, से तेण?णं० / [4-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? [3-2 उ.] गौतम ! दिन में शुभ पुद्गल होते हैं अर्थात् शुभ पुद्गल-परिणाम होते हैं, किन्तु रात्रि में अशुभ पुद्गल अर्थात् अशुभपुद्गल-परिणाम होते हैं / इस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है / 4. [1] नेरइयाणं भंते ! कि उज्जोए, अंधकारे ? गोयमा ! नेरइयाणं नो उज्जोए, अंधयारे / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 246 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org