________________ 510] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र शंका-समाधान—इस प्रकरण से पूर्व सूत्रों में उक्त वृद्धि, हानि और अवस्थिति के ही समानार्थक क्रमशः उपचय, अपचय और सोपचयापचय शब्द हैं, फिर भी इन नये सूत्रों की आवश्यकता इसलिए है कि पूर्वसूत्रों में जीवों के परिमाण का कथन अभीष्ट है, जबकि इन सूत्रों में परिमाण की अपेक्षा बिना केवल उत्पाद और उद्वर्तन इष्ट है। तथा तीसरे भंग में वृद्धि, हानि और अवस्थिति इन तीनों का समावेश हो जाता है।' पंचम शतक : प्रष्टम उद्देशक समाप्त। 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 245 (ख) भगवती० हिन्दी विवेचन, भा. 2, पृ. 912-913 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org