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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-१] [15 उठाए उट्ठता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महा. वीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण पयाहिणं करेति, तिक्खुत्तो प्रायाहिण पयाहिणं करेत्ता वंदति, नमसति, नच्चासन्ने नाइवूरे सुस्सूसमाणे अमिमुहे विणएणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी-- (4) तत्पश्चात् जातश्रद्ध (प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले), जातसंशय, जातकुतुहल, संजातश्रद्ध, समुत्पन्न श्रद्धा वाले, समुत्पन्न कुतूहल वाले भगवान् गौतम उत्थान से (अपने स्थान से उठकर) खड़े होते हैं / पर्वक खडे होकर श्रमण गौतम जहाँ (जिस ओर) श्रमण भगवान महावीर हैं. उस (उनके निकट आते हैं। निकट अाकर श्रमण भगवान महावीर को उनके दाहिनी योर से प्रारम्भ करके तीन बार प्रदक्षिणा करते हैं। फिर वन्दन-नमस्कार करते हैं। नमस्कार करके वे न तो बहुत पास और न बहुत दूर भगवान् के समक्ष विनय से ललाट पर हाथ जोड़े हुए भगवान् के वचन सुनना चाहते हुए उन्हें नमन करते व उनको पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले विवेचन-राजगृह में भगवान महावीर का पदार्पण : गौतम स्वामी की प्रश्न पूछने की तैयारीप्रस्तुत चतुर्थ सूत्र से शास्त्र का प्रारम्भ किया गया है / इसमें नगर, राजा, रानी, भगवान् महावीर, परिषद् -समवसरण, धर्मापदेश, गौतमस्वामो तथा उनके द्वारा प्रश्न पूछने की तैयारी तक का क्षेत्र या व्यक्तियों का वर्णन किया गया है, वह सब भगवती सूत्र में यत्र-तत्र श्री भगवान् महावीर स्वामी से श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्न और उनके द्वारा दिये गए उत्तरों की पृष्ठभूमि के रूप में अंकित किया गया है / इस समग्र पाठ में कुछ वर्णन के लिए 'वर्णक' या 'जाव' से अन्य सूत्र से जान लेते की सूचना है, कुछ का वर्णन यहीं कर दिया गया है। इस समग्र पाठ का प्रकार है (1) भगवान् महावीर के युग के राजगृह नगर का वर्णन (2) वहाँ के तत्कालीन राजा श्रेणिक और रानी चिल्लणा का उल्लेख (3) अनेक विशेषणों से युक्त श्रमण भगवान् महावीर का राजगृह के अासपास विचरण / (4) इसके पश्चात् 'समवसरण' तक के वर्णन में निम्नोक्त वर्णन गभित हैं—(अ) भगवान् के 1008 लक्षणसम्पन्न शरीर तथा चरण-कमलों का वर्णन, (जिनसे वे पैदल विहार कर रहे थे), (प्रा) उनको बाह्य (अष्ट महाप्रातिहार्यरूपा) एवं अन्तरंग विभूतियों का वर्णन, (इ) उनके चौदह हजार साधुओं और छत्तीस हजार आर्यिकाओं के परिवार का वर्णन, (ई) बड़े-छोटे के क्रम से ग्रामानुग्राम सुखपूर्वक विहार करते हुए राजगृह नगर तथा तदन्तर्गत गुणशीलक चैत्य में पदार्पण का वर्णन, (उ) तदनन्तर उस चैत्य में अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी प्रात्मा को भावित करते जमान हुए और उनका समवसरण लगा। (ए) समवसरण में विविध प्रकार के ज्ञानादि शक्तियों से सम्पन्न साधुओं आदि का वर्णन, तथा असुर कुमार, शेष भवनपतिदेव, व्यन्तरदेव, ज्योतिष्कदेव एवं वैमानिकदेवों का भगवान् के समीप आगमन एवं उनके द्वारा भगवान् की पर्युपासना का वर्णन / 1. 2. राजगह वर्णन-औपपातिक सत्र 1 भगवान के शरीरादि का वर्णन–औपपातिक सूत्र 10,14,15,16,17 देवागमन वर्णन-प्रौपपातिक सूत्र 22 से 26 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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