________________ पंचम शतक : उद्देशक-६] [467 किराने के माल से प्रारम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्यायको तक कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? और उस विक्रेता गृहस्थ को पांचों क्रियानों में से कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? [7 उ.] गौतम ! (उपर्युक्त स्थिति में) खरीददार को उस किराने के सामान से आरम्भिको से लेकर अप्रत्याख्यानिकी तक चारों क्रियाएँ लगती हैं: मिथ्यादर्शन-प्रत्यायको क्रिया की भजना है: (अर्थात्--खरीददार यदि मिथ्यादृष्टि हो तो मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लगती है, अगर वह मिथ्यादृष्टि न हो तो नहीं लगती)। विक्रेता गृहस्थ को तो (मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी क्रिया की भजना के साथ) ये सब क्रियाएँ प्रतनु (अल्प) होती हैं / 8. [1] गाहावतिस्स गंमते ! भंडं जाव धणे य' से अणुवणीए सिया० ? एवं पि जहा 'भंडे उवणोते' तहा नेयव्वं / [8-1 प्र.] भगवन् ! भाण्ड-विक्रेता गहस्थ से खरीददार ने किराने का माल खरीद लिया, किन्तु जब तक उस विक्रेता को उस माल का मूल्यरूप धन नहीं मिला, तब तक, हे भगवन् ! उस खरीददार को उस अनुपनीत धन से कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? (साथ ही) उस विक्रेता को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? __ [8-1 उ.] गौतम ! यह पालापक भी उपनीत भाण्ड (खरोददार द्वारा ले जाए जाने वाले किराने) के पालापक के समान समझना चाहिए। [2] चउत्थो पालावगो'-धणे य से उवणीए सिया जहा पढमो पालावगो 'भंडे य से अणुदणीए सिया' तहा नेयधो / पढम-चउत्थाणं एक्को गमो / बितिय-ततियाणं एक्को गमो / 18-2] चतुर्थ आलापक-यदि धन उपनीत हो तो प्रथम पालापक, (जो कि अनुपनीत भाण्ड के विषय में कहा है) के समान समझना चाहिए। (सारांश यह है कि) पहला और चोथा आलापक समान है, इसी तरह दूसरा और तीसरा आलापक समान है।। विवेचन-विक्रेता और क्रेता को विक्रेय माल से लगने वाली क्रियाएँ-- प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 5 से 8 तक) में भाण्ड-विक्रेता और खरीददार को किराने के माल (भाण्ड)-सम्बन्धी विभिन्न अवस्थानों में लगने वाली क्रियानों का निरूपण किया गया है। 1. धन से सम्बन्धित प्रथम पालापक इस प्रकार कहना चाहिए--- "गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंड साइज्जेज्जा, धणे य से अणवणीए सिया, कइयस्स णं ताओ धणाओ कि आरंभिया किरिया काजइ 5 ? गाहावइस्स य ताओ धणाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ 5? गोयमा ! कइयस्स ताओ धणाओ हेट्रिल्लाओ चत्तारि किरियाओ कज्जति, मिच्छादसणकिरिया भयणाए / गाहावइस्स णं ताओ सम्वाओ पताई भवति / " भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 229 1. धन से सम्बन्धित चतुर्थ पालापक इस प्रकार कहना चाहिए “गाहावइस गं भंते ! भंड विश्किणमाणस्स कइए मंडं साइज्जेज्जा धणे य से उवणीए सिया, गाहावइस्स गं भंते ! ताओ धणाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ 5 ? कइयरस वा ताओ धणाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ 5? गोयमा ! गाहावइस्स ताओ धणाओ आरंभिया 5, मिच्छादसणवत्तिया सिय कन्जइ, सिय नो कज्जइ / कइयस्स गं ताओ सम्वाओ पपणुईभवंति"-भगवती अ. वृत्ति, प. 229 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org