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________________ 452] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सम्यग्दृष्टि वैमानिकों में से जो अनन्तरोपपन्नक होते हैं, उन्हें भी ज्ञान नहीं होता, तथा परम्परोपपन्नक वैमानिकों में भी जो अपर्याप्त होते हैं, उन्हें भी ज्ञान नहीं होता, इसी प्रकार जो पर्याप्त वैमानिक देव हैं, उनमें जो उपयोगयुक्त होता है, वही केवली के प्रकृष्ट मन-वचन को जान-देख सकता है, उपयोगरहित नहीं। तात्पर्य यह है कि जो वैमानिक देव अमायी सम्यग्दृष्टि, परम्परोपपनक पर्याप्त एवं उपयोगयुक्त होते हैं, वे ही केवली के प्रकृष्ट मन-वचन को जान-देख सकते हैं। अनुतरौपपातिक देवों का असीम मनोद्रव्य-सामर्थ्य और उपशान्तमोहत्त्व ___31. [1] पमूणं भंते ! अणुत्तरोववातिया देवा तत्थगया चेव समाणा इहगतेणं केवलिणा सद्धि प्रालावं वा संलावं वा करेत्तए ? हंता, पभू। __ [31-1 प्र.] भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक (अनुत्तरविमानों में उत्पन्न हुए) देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, यहाँ रहे हुए केवली के साथ आलाप (एक बार बातचीत) और संलाप (बारबार बातचीत) करने में समर्थ हैं ? [31-1 उ.] गौतम ! हाँ, (वे ऐसा करने में) समर्थ हैं / [2] से केण?णं जाव पमू णं अणुत्तरोववातिया देवा जाव करेत्तए ? गोयमा ! जंणं अणत्तरोववातिया देवा तत्थगता चेव समाणा अट्टवा हे वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा पुच्छंति, तं णं इहगते केवली अटु वा जाव वागरणं वा वागरेति / से तेण?णं० / [31-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि अनुत्तरोपपातिक देव यावत् आलाप और संलाप करने में समर्थ हैं ? [31-2 उ.] हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण (व्याख्या) पूछते हैं, उस (अर्थ, हेतु आदि) का उत्तर यहाँ रहे हुए केवली भगवान् देते हैं। इस कारण से यह कहा गया है कि अनुत्तरोपपातिक देव यावत् आलापसंलाप करने में समर्थ हैं। 32. [1] जेणं भंते ! इहगए चेव केवली अट्ट वा जाव वागरेति तं णं अणुत्तरोववातिया देवा तत्थगता चेव समाणा जाणंति, पासंति ? हंता, जाति पासंति / 32-1 प्र.] भगवन् ! केवली भगवान् यहाँ रहे हुए जिस अर्थ, यावत् व्याकरण का उत्तर देते हैं, क्या उस उत्तर को वहाँ रहे हुए अनुत्तरौपपातिक देव जानते-देखते हैं ? 1. (क) वियाहपण्णत्तिसूत्रं (मूलपाठटिप्पणयुक्त), पृ. 201 (ख) भगवतीसूत्र अ. बृत्ति, पत्रांक 223. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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