________________ 446 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 22. भते ! 'संजयासंजया' ति वत्तवं सिया ? गोयमा ! णो इण? समढे। असम्भूयमेयं देवाणं। [22 प्र.] भगवन् ! क्या देवों को 'संयतासयत' कहना चाहिए? [22 उ.] गौतम ! यह अर्थ (भी) समर्थ नहीं है, देवों को 'संयतासंयत' कहना (देवों के लिए) असद्भूत (असत्य) वचन है। 23. से कि खाति णं भते ! देवा ति वत्तव्वं सिया? गोयमा! देवा णं 'नोसंजया ति वत्तव्वं सिया। [23 प्र. ] भगवन् ! तो फिर देबों को किस नाम से कहना (पुकारना चाहिए ? [23 उ.] गौतम ! देवों को 'नोसंयत' कहा जा सकता है / विवेचन देवों को संयत, असंयत और संयतासंयत न कह कर 'नोसंयत'-कथन-निर्देशप्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 20 से 22 तक) में देवों को संयत, असंयत एवं संयतासंयत न कहने का कारण बताकर चतुर्थ सूत्र में 'नोसंयत' कहने का भगवान् का निर्देश अंकित किया गया है। देवों के लिए 'नोसंयत' शब्द उपयुक्त क्यों ? दो कारण--(१) जिस प्रकार 'मृत' और 'दिबंगत' का अर्थ एक होते हुए भी 'मर गया' शब्द निष्ठुर (कठोर) वचन होने से 'स्वर्गवासी हो गया' ऐसे अनिष्ठुर शब्दों का प्रयोग किया जाता है वैसे ही यहाँ 'असंयत' शब्द के बदले 'नोसंयत' शब्द का प्रयोग किया गया है। (2) ऊपर के देवलोकों के देवों में गति, शरीर, परिग्रह और अभिमान न्यून होने तथा लेश्या भी प्रशस्त तथा सम्यग्दृष्टि होने से कषाय भी मन्द होने तथा ब्रह्मचारी होने के कारण यत्किचित् भावसंयतता उनमें आ जाती है, इन देवों की अपेक्षा से उन्हें 'नोसंयत' कहना उचित है।' देवों की भाषा एवं विशिष्ट भाषा : अर्धमागधी 24. देवा गं मते! कयराए भासाए भासंति? कतरा वा भासा भासिज्जमाणी विसिस्सति ? गोयमा! देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति, सा वि य णं अद्धमागहा मासा भासिज्जमाणी विसिस्सति / [24 प्र.) भगवन् ! देव कौन-सी भाषा बोलते हैं ? अथवा (देवों द्वारा) बोली जाती हुई कौन-सी भाषा विशिष्टरूप होती है ? [24 उ.] गौतम ! देव अर्धमागधी भाषा बोलते हैं, और बोली जाती हुई वह अर्धमागधी भाषा ही विशिष्टरूप होती है। 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 221 (ख) 'गति-शरीर-परिग्रहाऽभिमानतो होना:-तत्त्वार्थ सूत्र अ. 4, सू-२२ 'परेऽप्रवीचारा:'-तत्वार्थसूत्र, अ. 4, सू. 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org