________________ पंचम शतक : उद्देशक-४ ] [ 433 हुए) शब्दों को सुनता है, अस्पृष्ट शब्दों को नहीं सुनता; यावत् नियम से छह दिशानों से आए हुए स्पृष्ट शब्दों को सुनता है। 3. छउमत्थे णं मते ! मणस्से कि पारगताई सद्दाई सुणेइ ? पारगताई सद्दाई सुणेइ ? गोयमा ! प्रारगयाइं सदाई सुणेइ, नो पारगयाइं सदाई सुणेइ / [3 प्र.] भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य पारगत (पाराद्गत–इन्द्रिय विषय के समीप रहे हुए) शब्दों को सुनता है, अथवा पारगत (इन्द्रिय विषय से दूर रहे हुए) शब्दों को सुनता है ? [3 उ.] गौतम ! (छद्मस्थ मनुष्य) पारगत शब्दों को सुनता है, किन्तु पारगत शब्दों को नहीं सुन पाता। 4. [1] जहा गं भते ! छउमत्थे मणुस्से पारगयाइं सदाई सुणेइ, नो पारगयाइं सदाई सुणेइ, तहा णं भते ! केवली कि प्रारगयाइं सदाइं सुणेइ, नो पारगयाइं सदाइं सुणेइ ? गोयमा ! केवलो णं प्रारगयं वा पारगयं वा सव्वदूरमूलमणतियं सदं जाणइ पासइ / [4-1 प्र.] भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य प्रारगत शब्दों को सुनता है, किन्तु पारगत शब्दों को नहीं सुनता; वैसे हो, हे भगवन् ! क्या केवली (केवलज्ञानी) भी पारगत शब्दों को ही सुन पाता है, पारगत शब्दों को नहीं सुन पाता ? [4-1 उ.] गौतम ! केवली मनुष्य तो पारगत, पारगत, अथवा समस्त दूरवर्ती (दूर तथा अत्यन्त दूर के) और निकटवर्ती (निकट तथा अत्यन्त निकट के) अनन्त (अन्तरहित) शब्दों को जानता और देखता है। [2] से केणढणं तं चेव केवली णं पारगयं वा जाव पासइ ? गोयमा ! केवली गं पूरस्थिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ; एवं दाहिणेणं, पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं, उड्ड, अहे मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ, सव्वं जाणइ केवली, सव्वं पासइ केवली. सम्वतो जाण पासह, सबकालं जा पा०, सब्वभावे जाणह केवली, सवभावे पास केवलो, अणते नाणे केलिस्स, अणते दसणे केवलिस्स, निव्वुडे नाणे केवलिस्स,' निम्बुडे सणे केवलिस्स / से तेण?णं जाव पासइ / [4.2 प्र] भगवन् ! इसका क्या कारण है कि केवली मनुष्य पारगत, पारगत, अथवा यावत् सभी प्रकार के (दूरवर्ती, निकटवर्ती) अनन्त शब्दों को जानता-देखता है ? [4-2 उ.] गौतम ! केवली (भगवान् सर्वज्ञ) पूर्व दिशा की मित वस्तु को भी जानतादेखता है, और अमित वस्तु को भी जानता-देखता है। इसी प्रकार दक्षिण दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा की मित वस्तु को भी जानता-देखता है तथा अमित वस्तु को भी जानता-देखता है / केवलज्ञानी सब जानता है और सब देखता है। केवली भगवान् सर्वतः (सब 1. पाठान्तर --निव्वुडे वितिमिरे विसुद्ध' इन तीनों विशेषणों से युक्त पाठ अन्य प्रतियों में मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org