________________ पंचम शतक : उद्देशक-३] [431 विचार-प्रस्तुत चार सूत्रों में मुख्यतया चार पहलुओं से चारों गतियों तथा चौबीसों दण्डकों के जीवों का प्रायुष्यबन्ध-सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किया गया है / वे चार पहलू इस प्रकार हैं (1) नरक से लेकर वैमानिक देवों तक चौबीस ही दण्डकों का दूसरी गति में जाने योग्य जीव आयुष्य सहित होकर दूसरी गति में जाता है / (2) जीव अगली गति में जाने योग्य प्रायुष्य इसी गति में बांध लेता है तथा तद्योग्य पाचरण इसी (पूर्व) गति में करता है / (3) नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव इन चारों में से जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, वह उसी योनि का प्रायुष्य बांध लेता है। (4) नरकयोनि का आयुष्य बांधने वाला सात नरकों में से किसी एक नरक का, तिर्यञ्चयोनि का प्रायुष्य बांधने वाला जीव पांच प्रकार के तिर्यंचों में किसी एक प्रकार के तिर्यञ्च का, एवं मनुष्ययोनि सम्बन्धी प्रायुष्य बांधने वाला जीव दो प्रकार के मनुष्यों में से किसी एक प्रकार के मनुष्य का और देवयोनि का आयुष्य बांधने वाला जीव चार प्रकार के देवों में से किसी एक प्रकार के देव का आयुष्य बांधता है।' / / पंचम शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त / / 1. भगवती प्र० वृत्ति, पत्रांक 215 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org