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________________ 430 [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 5. से नणं भाते ! जे जे भविए जीणि उववज्जित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहा-नेरतियाउयं वा जाव देवाउयं वा ? हंता, गोयमा ! जे जं भविए जोणि उववज्जित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहा–नेरइयाउयं वा, तिरि०, मणु०, देवाज्यं वा। नेरइयाउथं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं जहा–रयणप्पभापुढवि रइयाउयं वा जाव आहेसत्तमापुढविनेरइयाउयं वा। तिरिक्खजोणियाउयं परेमाणे पंचविहं पकरेइ, तं जहा---एगिदितिरिक्खजोणियाउयं वा, भेदो सन्चो भाणियन्वो। मणुस्साउयं दुविहं / देवाउयं चविहं / सेवं भते ! सेवं भाते ! ति / // पंचम सए : तइप्रो उद्देसनो // [5 प्र.] भगवन् ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, क्या वह जीव, उस योनि सम्बन्धी आयुष्य बांधता है ? जैसे कि जो जीव नरक योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, क्या वह नरकयोनि का आयुष्य बांधता है, यावत् देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव क्या देवयोनि का आयुष्य बांधता है ? [5 उ.] हाँ, गौतम ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, वह जीव उस योनिसम्बन्धी आयुष्य को बाँधता है। जैसे कि नरक योनि में उत्पन्न होने योग्य जीव नरकयोनि का आयुष्य बांधता है, तिर्यञ्चयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव, तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य बांधता है, मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीव मनुष्य योनि का प्रायूष्य बाँधता है यावत देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव देवयोनि का आयुष्य बांधता है। जो जीव नरक का आयुष्य बांधता है, वह सात प्रकार की नरकभूमि में से किसी एक प्रकार की नरक भूमि सम्बन्धी आयुष्य बांधता है। यथा-रत्नप्रभा (प्रथम नरक) पृथ्वी का आयुष्य, अथवा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी (सप्तम नरक) का आयुष्य बांधता है / जो जीव तिर्यञ्चयोनि का प्रायुष्य बांधता है, वह पांच प्रकार के तिर्यञ्चों में से किसी एक प्रकार का तिर्यञ्च-सम्बन्धी आयुष्य बांधता है / यथा-एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनि का आयुष्य इत्यादि / तिर्यञ्च के सभी भेदविशेष विस्तृत रूप से यहाँ कहने चाहिए / जो जीव मनुष्य-सम्बन्धी आयुष्य बांधता है, वह दो प्रकार के मनुष्यों में से किसी एक प्रकार के मनुष्य-सम्बन्धी आयुष्य को बांधता है, (यथा-सम्मूच्छिम मनुष्य का, अथवा गर्भज मनुष्य का / ) जो जीव देवसम्बन्धी आयुष्य बांधता है, तो वह चार प्रकार के देवों में से किसी एक प्रकार के देव का आयुष्य बांधता है। (यथा-भवनपति देव का, ' वाणव्यन्तर देव का, ज्योतिष्क देव का अथवा वैमानिक देव का आयुष्य / इनमें से किसी एक प्रकार के देव का आयुष्य बांधता है।) "हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर यावत् विचरते हैं। विवेचन--चौबीस दण्डकों तथा चतुर्विध योनियों की अपेक्षा से प्रायुष्यबन्ध सम्बन्धी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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