________________ 406] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चार विदिशाएँ, अर्थात् चार कोण-उदीण-पाईणं - उत्तर-पूर्व के बीच की दिशा = ईशानकोण ; दाहिण-पडोणं =दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा = नैऋत्यकोण ; पाईण-दाहिणं - पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा = आग्नेय कोण, तथा पडीण-उदोणं = पश्चिम और उत्तर के बीच की दिशा- वायव्य कोण / ' उदोण = उत्तर दिशा के पास का प्रदेश उदीचीन, तथा पाईण प्राची (पूर्व) दिशा के निकट का प्रदेश-प्राचीन / जम्बूद्वीप में दिवस और रात्रि का कालमान-- 7. अदा णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे उक्कोसए अद्वारसमहत्ते दिवसे भवति तदा गं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए प्रद्वारसमुहत्ते दिवसे भवति ? जदा गं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति तदा णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पुरस्थिम-पच्चस्थिमेणं जहनिया दुवालसमुहता राती भवति / हंता, गोयमा ! जदा णं जंब० जाव दुवालसमुहुत्ता राती भवति / [7 प्र.] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप' नामक द्वीप के दक्षिणार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहत्तं का दिन होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी उत्कृष्ट (सब से बड़ा) अठारह मुहूर्त का दिन होता है ?, और जब उत्तरार्द्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप में मन्दर (मेरु) पर्वत से पूर्व-पश्चिम में जघन्य (छोटी से छोटी) बारह मुहूर्त की रात्रि होती है ? [7 उ.] हाँ, गौतम ! (यह इसी तरह होती है / अर्थात्-.) जब जम्बूद्वीप में, यावत्..." बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। 8. जदा णं जंबु० मंदरस्स पुरथिमेणं उक्कोसए अट्ठारस जाव तदा णं जंबुद्दोवे दोवे पच्चस्थिमेण वि उक्को० अटारसमुहत्ते दिवसे भवति ? जया णं पच्चत्थिमेणं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति तदा णं भंते ! जंबद्दीवे दीवे उत्तर० दुवालसमुहत्ता जाव रातो भवति ? हंता, गोयमा ! जाव भवति / / [8 प्र.] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के मेरु-पर्वत से पूर्व में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के पश्चिम में भी उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है ?, और भगवन् ! जब पश्चिम में उत्कृष्ट अठारह मुहर्त का दिवस होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के उत्तर में जघन्य (छोटी से छोटी) बारह मुहूर्त की रात्रि होती है ? [8 उ.] हाँ, गौतम ! यह इसी तरह-यावत्..... होता है / 6. जदा णं भंते ! जंबु० दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवति तदा णं उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवति ? जदा गं उत्तरे प्रद्वारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति तदा णं जंबु० मंदरस्स पन्चयस्स पुरस्थिम-पच्चस्थिमेणं सातिरेगा दुवालसमुहुत्ता रातो भवति ? __ हंता, गोयमा ! जदा णं जंबु० जाय रातो भवति / 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 207-208 (ख) भगवती० (विवेचनयुक्त) (पं. घेवरचन्दजी) भा. 2, पृ-७५३ से 756 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org