________________ 372 [व्याख्याप्रप्तिसूत्र यावन्ने तहप्पगारा सत्वे ते तब्भत्तिया तपक्खिया तम्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारगणो प्राणा-उववाय-वयण-निद्दे से चिट्ठति / [4-4] देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज की आज्ञा में, सेवा (उपपात = समीप) में, वचन-पालन में, और निर्देश में ये देव रहते हैं, यथा-सोमकायिक, अथवा सोमदेवकायिक, विद्युत्कुमार-विद्युत्कुमारियाँ, अग्निकुमार-अग्निकुमारियाँ, वायुकुमार-वायुकुमारियाँ, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप; ये तथा इसी प्रकार के दूसरे सब उसकी भक्ति वाले, उसके पक्ष वाले, उससे भरण-पोषण पाने वाले (भृत्य या उसकी अधीनता में रहने वाले) देव उसकी प्राज्ञा, सेवा, वचनपालन और निर्देश में रहते हैं / [5] जंबुद्दीवे 2 मंदरस्स पन्चयस्स दाहिणणं जाई इमाइं समुष्पज्जंति, तं जहा--गहदंडा ति वा, गहमुसला ति वा, गहगज्जिया ति वा, एवं गहजुद्धा तिवा, गहसिंघाडगा ति वा, गहावसच्या इ वा, अम्मा ति वा, अन्भरुक्खा ति वा, संझा इ वा, गंधवनगरा ति वा, उक्कापाया ति वा, दिसीदाहा ति वा, गज्जिया ति वा, विज्जुया ति वा, पंसुवुट्ठी ति वा, जूवेति वा, जक्खालित्तेत्ति वा, धूमिया इ वा, महिया इ वा, रयुग्घाया इ था, चंदोवरागा ति बा, सूरोवरागा ति वा, चंदपरिवेसा ति वा, सूर परिवेसा ति वा, पडिचंदाइ वा, पडिसूरा ति बा, इंदधणू ति वा, उदगमच्छ-कपिहसिय-अमोहपाईणवाया ति वा, पडीणवाता ति वा, जाव संवट्टयवाता ति वा, गामदाहा इ वा, जाव सन्निवेसदाहा ति वा पाणक्खया जणक्खया धणक्खया कुलक्खया बसणभूया अशारिया जे यावन्ने तहप्पगारा ण ते सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो सोमस्स महारग्णो अण्णाया अदिट्ठा असुया प्रमुया अविण्णाया, तेसि वा सोमकाइयाणं देवाणं। [4-5] इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में जो ये कार्य होते हैं यथा--ग्रहदण्ड, अहमूसल, ग्रहजित, ग्रहयुद्ध, ग्रह-शृंगाटक, ग्रहापसव्य, अभ्र, अभ्रवृक्ष, सन्ध्या, गन्धर्वनगर, उल्कापात, दिग्दाह, गजित, विद्युत् (बिजली चमकना), धूल की वृष्टि, यूप, यक्षादीप्त, धूमिका, महिका, रजउद्घात, चन्द्रग्रहण (चन्द्रोपराग), सूर्योपराग (सूर्यग्रहण), चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, (सूर्य मण्डल), प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, अथवा उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, पूर्वदिशा का वात और पश्चिमदिशा का वात, यावत् संवर्तक वात, ग्रामदाह यावत् सन्निवेशदाह, प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय यावत् व्यसनभुत अनार्य (पापरूप) तथा उस प्रकार के दूसरे सभी कार्य देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल–सोम महाराज से (अनुमान की अपेक्षा) अज्ञात (न जाने हुए), अदष्ट (न देखे हुए), अश्रुत (न सुने हुए), अस्मृत (स्मरण न किये हुए) तथा अविज्ञात (विशेषरूप से न जाने हुए) नहीं होते / अथवा ये सब कार्य सोमकायिक देवों से भी अज्ञात नहीं होते / अर्थात् उनकी जानकारी में ही होते हैं। [6] सक्कस्स णं देविदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो इमे प्रहावच्चा अभिण्णाया होत्या, तं जहा-इंगालए वियालए लोहियक्खे सणिच्छरे चंदे सूरे सुक्के बुहे बहस्सती राहू / (4-6) देवेन्द्र देवराज शक के लोकपाल–सोम महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभिज्ञात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org