________________ 328 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अभिसमन्वागत की है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि यावत् हमने भी उपलब्ध यावत् अभिसमन्वागत की है / अतः हम जाएँ और देवेन्द्र देवराज शक के निकट (सम्मुख) प्रकट हों एवं देवेन्द्र देवराज शक्र द्वारा प्राप्त यावत अभिसमन्वागत उस दिव्य देवऋद्धि यावत दिव्य देवप्रभाव को देखें; तथा हमारे द्वारा लब्ध, प्राप्त एवं अभिसमन्वागत उस दिव्य देव ऋद्धि यावत दिव्य देवप्रभाव को देवेन्द्र देवराज शक्र देखें / देवेन्द्र देवराज शक्र द्वारा लब्ध यावत अभिसमन्वागत दिव्य देवऋद्धि यावत दिव्य देवप्रभाव को हम जानें, और हमारे द्वारा उपलब्ध यावत् अभिसमन्वागत उस दिव्य देवऋद्धि यावत् देवप्रभाव को देवेन्द्र देवराज शक जानें / हे गौतम ! इस कारण (प्रयोजन) से असुरकुमार देव यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, ऐसा कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करने लगे। चमरेन्द्र-सम्बन्धी वृत्तान्त पूर्ण हुग्रा / विवेचन-- असुरकुमार देवों के सौधर्मकल्पपर्यन्त गमन का प्रयोजन प्रस्तुत सूत्र में असुरकुमार देवों द्वारा ऊपर सौधर्म देवलोक तक जाने का कारण प्रस्तुत किया गया है। वे शकेन्द्र की देवऋद्धि आदि से चकित होकर उसकी देवऋद्धि आदि देखने-जानने और अपनी देवऋद्धि दिखानेबताने हेतु सौधर्मकल्पपर्यन्त जाते हैं। तब और अब के ऊर्ध्वगमन और गमनकर्ता में अन्तर-पूर्वप्रकरण में असुरकुमार देवों के ऊर्ध्वगमन का कारण भव-प्रत्यायिक वैरानबन्ध (जन्मजात शत्रता) बताया गया था। जबकि इस प्रकरण में ऊर्ध्वगमन का कारण बताया गया है-शकेन्द्र की देवऋद्धि आदि को देखना-जानना तथा अपनो दिव्यऋद्धि आदि को दिखाना-बताना / इसके अतिरिक्त ऊध्र्वगमनकर्ता भी यहाँ दो प्रकार के असुर कुमार देव बताये गए हैं--या तो वे अधुना (तत्काल) उत्पन्न होते हैं, या वे देवभव से च्यवन करने की तैयारी वाले होते हैं।' // तृतीयशतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त // 1. (क) भगवतीमूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 181 (ख) भगवतीसूत्र विवेचनयुक्त (पं. घेवरचन्दजी), भा. 2, पृ. 650 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org