________________ अस्वीकार 285, पुरोहित बनने की विनति नहीं 288 देवों की गति के विशेषण 288, 'सपक्खिं सपडिदिसि' की व्याख्या 288, तामली बालतपस्वी की ईशानेन्द्र के रूप में उत्पत्ति 288, तामली तापस की कठोर बाल तपस्या एवं संलेखनापूर्वक अनशन का सुफल 289, देवों में पांच ही पर्याप्तियों का उल्लेख 289, बलि चंचावासी असुरों द्वारा तामली तापस के शव को विडम्बना 289, प्रकुपित ईशानेन्द्र द्वारा भस्मीभूत बलिचंचा देख भयभीत असुरों द्वारा अपराध-क्षमायाचना 290, ईशानेन्द्र के प्रकोप से उत्तप्त एवं भयभीत असुरों द्वारा क्षमायाचना 292, कठिन शब्दों के विशिष्ट अर्थ 293, ईशानेन्द्र की स्थिति तथा परम्परा से मुक्त हो जाने की प्ररूपणा 293, बालतपस्वी को इन्द्रपद प्राप्ति के बाद भविष्य में मोक्ष कैसे ? 294, शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों की ऊँचाई-नीचाई में अन्तर 294, उच्चता-नीचता या उन्नतता-निम्नता किस अयेक्षा से ? 295, दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार तथा विवाद में सनत्कुमारेन्द्र की मध्यस्थता 295, कठिन शब्दों के विशेषार्थ 298, सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता अादि तथा स्थिति एवं सिद्धि के विषय में प्रश्नोत्तर 298, कठिन शब्दों के अर्थ 299, तृतीय शतक के प्रथम उद्देशक की संग्रहणी गाथाएँ 300 / द्वितीय उद्देशक-चमर (सूत्र 1-45) द्वितीय उद्देशक का उपोद्घात 301, असुरकुमार देवों का स्थान 301, असुरकुमार देवों का प्रावासस्थान 02, असुरकुमार देवों का यथार्थ आवासस्थान 302, असुरकुमार देवों के अधो-तिर्यक-ऊर्ध्वगमन से सम्बन्धित प्ररूपणा 302, 'असुर' शब्द पर भारतीय धर्मों की दृष्टि से चर्चा 307, कठिन शब्दों की व्याख्या 308, चमरेन्द्र के पूर्वभव से लेकर इन्द्रत्व प्राप्ति तक का वृत्तान्त 308, 'दाणामा पन्वज्जा' का आशय 311, पूरण तापस और पूरण काश्यप 311, सुसुमारपुर--सुसुमारगिरि 312, कठिन शब्दों की व्याख्या 312 चमरेन्द्र द्वारा सौधर्मकल्प में उत्पात एवं भगवदाश्रय से शकेन्द्रकृत वनपात से मुक्ति 312, शकेन्द्र के विभिन्न विशेषणों की व्याख्या 320, कठिन शब्दों की व्याख्या 320, फैके हुए पुदगल को पकड़ने को देवशक्ति और गमन-सामर्थ्य में अन्तर 320, इन्द्रद्वय एवं वन की ऊर्वादि गति का क्षेत्र-काल की दृष्टि से अल्पबहुत्व 322, संख्येय, तुल्य और विशेषाधिक का स्पष्टीकरण 324. बजभयमुक्त चिन्तित बमरेन्द्र द्वारा भगवत सेवा में जाक क्षमायाचन और नाट्यप्रदर्शन 325, इन्द्रादि के गमन का यन्त्र 325, असुरकुमारों के सौधर्मकल्पपर्यन्त गमन का कारणान्तर निरूपण 327, तब और अब के उर्ध्वगमनकर्ता में अन्तर 328 / तृतीय उद्देशक-क्रिया (सूत्र 1-17) 329-340 क्रियाएँ: प्रकार और तत्सम्बन्धित चर्चा 329, क्रिया 331, पाँच क्रियाओं का अर्थ 331, क्रियाओं के प्रकार की व्याख्या 331, क्रिया और वेदना में क्रिया प्रथम क्यों ?332, श्रमण निग्रंथ की क्रियाः प्रमाद और योग से 332, सक्रिय-अक्रिय जीवों की अन्तक्रिया के नास्तित्व-अस्तित्व का दृष्टान्तपूर्वक निरूपण 332, तीन दृष्टान्त 336-37, विविध क्रियाओं का अर्थ 337, संरम्भ समारम्भ और प्रारम्भ का क्रम 337, 'दुक्खावणताए' आदि पदों की व्याख्या 337, प्रमत्तसंयमी और अप्रमत्तसंयमी के प्रमत्तसंयम और अप्रमत्तसंयम के सर्वकाल का प्ररूपण 338, प्रमत्तसंयम का काल एक समय कैसे ? 339, अप्रमत्त संयम का काल एक अन्तर्मुहूर्त क्यों ? 339, चतुर्दशी श्रादि तिथियों को लवणसमुद्रीय वृद्धि हानि का प्ररूपण 339, वृद्धि हानि का कारण 340 / चतुर्थ उद्देशक-यान (सूत्र 1-16) 341--352 भावितात्मा अनगार की बैंक्रियकृत देवी-देव-यानादि गमन तथा वृक्ष-मूलादि को जानने देखने की शक्ति का प्ररूपण 341, प्रश्नों का क्रम 342, मूल आदि दस पदों के द्विकसंयोगी 45 भंग 343, भावितात्मा [33] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org