________________ चतुर्थ उद्देशक-इन्द्रिय (सूत्र 1) 205-206 इन्द्रियाँ और उनके संस्थानादि से संबंधित वर्णन 205, संग्रहणी गाथा 205, चौबीस द्वारों के माध्यम से इन्द्रियों की प्ररूपणा 205, पंचम उद्देशक-निर्ग्रन्थ (सूत्र 1-27) 207-226 देव-परिचारणासम्बन्धी परमतनिराकरण-स्वमत-प्ररूपण 207, देव को परिचारणा सम्बन्धी चर्चा 208, सिद्धान्त-विरुद्ध मत 208, सिद्धान्तानुकल मत 209, उदकगर्भ आदि की काल स्थिति का विचार 209, उदकगर्भः कालस्थिति और पहचान 210, कायभवस्थ 210 योनिभूत रूप में बीज की काल स्थिति 210 मैथुन प्रत्यायिक संतानोत्पत्ति संख्या एवं मैथनसेवन से असयम का निरूपण 210, एक जीव शत-पृथक्त्व जीवों का पुन कसे ? 212, एक जीव के, एक ही भव में शत-सहस्र पृथक्त्व पूत्र कैसे ? 212, मैथुन सेवन से प्रसंयम 212, तुमिका नगरी के श्रमणोपासकों का जीवन 212, कठिन शब्दों के दूसरे अर्थ 214, तु गिका में अनेक गणसम्पन्न पापित्यीय स्थविरों का पदार्पण 215, कुत्रिकापण का अर्थ 215, तुगिका-निवासी श्रमणोपासक पाश्वपित्यीय स्थविरों की सेवा में 216, 'कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता' के दो विशेष अर्थ 218, तुगिका के श्रमणोपासकों के प्रश्न और स्थविरों के उत्तर 219, देवत्व किसका फल 221, 'व्यवदान' का अर्थ 221, राजगृह में गौतम स्वामी का भिक्षाचर्यार्थ पर्यटन 221, कुछ विशिष्ट शब्दों की व्याख्या 222, स्थविरों की उत्तरप्रदानसमर्थता आदि के विषय में गौतम की जिज्ञासा और भगवान द्वारा समाधान 223 'समिया' आदि पदों की व्याख्या 225, श्रमण-माहन पर्युपासना का अनन्तर और परम्पर फल 225, श्रमण 227, माहन 227, श्रमण-माहन-पयुपासना से अन्त में सिद्धि 227. राजगह का गर्मजल का स्रोत : वैसा है या ऐसा? 227 / 230--231 छठा उद्देशक भाषा (सूत्र 1) भाषा का स्वरूप और उससे संबंधित बर्णन 230, भाषा सम्बन्धी विश्लेषण 230 सप्तम उद्देशक-देव (सूत्र 1-2) 232-233 देवों के प्रकार, स्थान, उपपात, संस्थान प्रादि का वर्णन 232, देवों के स्थान प्रादि 233, वैमानिक प्रतिष्ठान आदि का वर्णन 233 / अष्टम उद्देशक-सभा (सूत्र 1) 234-237 असुरकुमार राजा चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा आदि का वर्णन 234, उत्पातपर्वत प्रादि शब्दों के विशेषार्थ 236, पदमबरवेदिका का वर्णन 236, वनखण्ड का वर्णन 236, उत्पातपर्वत का उपरितल 236, प्रासादावतंसक 236, चमरेन्द्र का सिंहासन 236, विजयदेव सभावत चमरेन्द्र सभावर्णन 237 / नवम उद्देशक द्वीप (समयक्षेत्र) (सूत्र 1) 238-236 समयक्षेत्र संबंधी प्ररूपणा 238, समय क्षेत्र: स्वरूप और विश्लेषण 238, समय क्षेत्र का स्वरूप 238, दशम उद्देशक-अस्तिकाय (सूत्र 1-22) 240-251 अस्तिकाय : स्वरूप, प्रकार विश्लेषण 240, 'अस्तिकाय' का निर्वचन 242, पाँचों का यह क्रम क्यों 242, पंचास्तिकाय का स्वरूप विश्लेषण 242, धर्मास्तिकायादि के स्वरूप का निश्चय 242, निश्चय नय का [ 31 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org