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________________ से प्रश्न पूछने की तैयारी 113, रोह अनगार के प्रश्न और भगवान महाबोर के उत्तर 113, इन प्रश्नों के उत्थान के कारण 116, अष्टविध लोकस्थिति का सदष्टान्त निरूपण 116, लोकस्थिति का प्रश्न और उसका यथार्थ समाधान 118, कर्मों के आधार पर जीव 118, जीव और पुदगलों का सम्बन्ध 118, जीव और पुद्गलों का सम्बन्ध तालाब और नौका के समान 119, सूक्ष्म स्नेहकायपात सम्बन्धी प्ररूपणा 119, 'समा समियं' का दूसरा अर्थ 120 / सप्तम उद्देशक-नरयिक (सूत्र 1-22) 121-131 नारकादि चौबीस दण्डकों के उत्पाद, उद्वर्तन और आहार संबंधी प्ररूपणा 121, प्रस्तुत प्रश्नोत्तर के सोलह दण्डक 123, देश और सर्व का तात्पर्य 123, नैरयिक की नरयिकों में उत्पत्ति कैसे ? 123, पाहार विषयक समाधान का प्राशय 123, देश और अर्द्ध में अन्तर 123, जीवों को विग्रह-अविग्रह गति संबंधी प्रश्नोत्तर 124, विग्रहगति-प्रविग्रहगति की व्याख्या 125, देव का च्यवनानन्तर आयुष्य प्रतिसंवेदन-निर्णय 125, गर्भगत जीव संबंधी वित्रार 126, द्रव्येन्द्रिय-भावेन्द्रिय 131, गर्भगत जीव के माहारादि 131, गर्भगत जीव के अंगादि 131, गर्भगत जीव के नरक या देवलोक में जाने का कारण 131, गर्भस्थ जीव की स्थिति 131, बालक का भविष्यः पूर्वजन्मकृत कर्म पर निर्भर 131 / अष्टम उद्देशक-बाल (सूत्र 1-11) 132-141 एकान्त बाल, पण्डित आदि के आयुष्यबंध का विचार 132, बाल आदि के लक्षण 133, एकान्त बाल मनुष्य के चारों गतियों का बंध क्यों 134, एकान्त पंडित की दो गतियाँ 134, मृगघातकादि को लगने वाली क्रियाओं की प्ररूपणा 134, षट्मास की अवधि क्यों ? 138, प्रासन्नवधक 138, पंचक्रियाएँ 138, अनेक बातों में समान दो योद्धानों में जय-पराजय का कारण 138, वीर्यवान और निर्वीर्य 139, जीव एवं चौबीस दण्डकों में सवीर्यत्व-अवीर्यत्व की प्ररूपणा 139, अनन्त वीर्य सिद्ध : अवीर्य कैसे ? 141, शैलेशी शब्द की व्याख्याएँ 141 / नवम उद्देशक-गुरुक (सूत्र 1-28) जीवों के गुरुत्व-लघुत्वादि की प्ररूपणा 142, जीवों का गुरुत्व-लघुत्व 143, चार प्रशस्त और चार अप्रशस्त क्यों 143, पदार्थों के गुरुत्व-लघुत्व आदि की प्ररूपणा 143, पदार्थों की गुरुता-लघुता आदि का चतुर्भग की अपेक्षा से विचार 145, गुरु-लघु आदि की व्याख्या 145, निष्कर्ष 146, अवकाशान्तर 146, श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त तथा अन्तकर 146, लाघव आदि पदों के अर्थ 147, आयुष्यबंध के संबंध में अन्यमतीय एवं भगवदीय प्ररूपणा 147, मायूष्य बंध करने का अर्थ 148, दो आयुष्य बंध क्यों नहीं? 148, पापित्यीय कालास्यवेषि पुत्र का स्थविरों द्वारा समाधान और हृदयपरिवर्तन 148, कठसेज्जा के तीन अर्थ 152, स्थविरों के उत्तर का विश्लेषण 152, सामायिक आदि का अभिप्राय 152, सामायिक आदि का प्रयोजन 152, गर्दा संयम कैसे ? 152, चारों में प्रत्याख्यान क्रिया : समान रूप से 152, प्राधाकर्म एवं प्रासुकएषणीयादि पाहारसेवन का फल 153, प्रासुक आदि शब्दों के अर्थ 154, बंधइ श्रादि पदों के भावार्थ 154, स्थिर-अस्थिरादि निरूपण 155, 'अथिरे पलोइ' आदि के दो अर्थ 155 / दशम उद्देशक-चलना (सूत्र 1-3) 156-161 चलमान चलित आदि से संबंधित अन्यतीथिकमत निराकरणपूर्वक स्वसिद्धान्त निरूपण 156, गौतम स्वामी द्वारा अन्य तीथिकों द्वारा प्रतिपादित नौ बातों की भगवान से पृच्छा 157-158, अन्यतीथिकों [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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