________________ 260 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ऋद्धि वाला है ; इत्यादि उसकी अग्रहिषियों तक का समग्र वर्णन (यहाँ कहना चाहिए)। हे गौतम ! ) यह कथन सत्य है / हे गौतम ! मैं भी इसी तरह कहता है, भाषण करता है, बतलाता हैं और प्ररूपित करता हूँ कि असुरेन्द्र असुरराज चमर महाऋद्धिशाली है, इत्यादि उसकी अग्रमहिषियों तक का समग्र वर्णनरूप द्वितीय गम (मालापक) यहाँ कहना चाहिए। (इसलिए हे गौतम ! द्वितीय गौतम अग्निभूति द्वारा कथित) यह बात सत्य है।' 6. सेवं भंते 2 0 तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, 2 जेणेव दोच्चे गोयमे अग्गिभूती प्रणगारे तेणेव उवागच्छइ, 2 दोच्च गोयम अग्गिभूति प्रणगारं बंदह नमंसति, 2 एयमसम्म विणएणं भुज्जो 2 खामेति / [9] 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ; (जैसा आप फरमाते हैं) भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर तृतीय गौतम वायुभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया, और फिर जहाँ द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार थे, वहां उनके निकट आए। वहाँ प्राकर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार को वन्दन-नमस्कार किया और पूर्वोक्त बात के लिए (उनकी कही हुई बात नहीं मानी थी, इसके लिए) उनसे सम्यक् विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की / 10. तए णं से दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अण. तच्चेणं गो० वायुभूइणा अण० एयमसम्म विणएणं भुज्जो 2 खामिए समाणे उढाए उठेइ, 2 तच्चेणं गो० वायुमूहणा प्रण सद्धि जेणेव समणे भगव० महावीरे तेणेव उवागच्छइ, 2 समणं भगबं०, बंदइ० 2 जाव पज्जुवासए / [10] तदनन्तर द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार उस पूर्वोक्त बात के लिए तृतीय गौतम वायभूति के साथ सम्यक प्रकार से विनयपूर्वक क्षमायाचना कर लेने पर अपने उत्थान से उठे और तृतीय गौतम वायुभूति अनगार के साथ वहाँ आए, जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे। वहाँ उनके निकट पाकर उन्हें (श्रमण भगवान् महावीर को) वन्दन-नमस्कार किया, यावत् उनकी पर्युपासना करने लगे। विवेचनचमरेन्द्र और उसके अधीनस्थ देवों की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणाशक्ति प्रस्तुत आठ सूत्रों (3 से 10 तक) में चमरेन्द्र और उसके अधीनस्थ सामानिक, त्रास्त्रिशक, लोकपाल एवं अनमहि षियों की ऋद्धि, द्युति, बल, यश, सौख्य, प्रभाव एवं विकुर्वणाशक्ति के विषय में अग्निभूति शंकाओं का समाधान अंकित है. साथ ही वायभति गौतम की इस समाधान के प्रति श्रद्धा, अप्रतीति एवं अरुचि होने पर श्रमण भगवान महावीर द्वारा पूनः समाधान और वायुभूति द्वारा क्षमायाचना का निरूपण है। ___'गौतम'-सम्बोधन-यहाँ ‘इन्द्रभूति गौतम' की तरह अग्निभूति और वायुभूतिगणधर को भी भगवान महावीर ने 'गौतम' शब्द से सम्बोधित किया है, उसका कारण यह है कि भगवान् महावीर के ग्यारह गणधर अन्तेवासी (पशिष्य) थे, उनमें से प्रथम इन्द्रभति, द्वितीय अग्निभूति और तृतीय वायुभूति थे। ये तीनों ही अनगार सहोदर भ्राता थे / ये गुब्बर (गोवर) ग्राम में गौतम गोत्रीय विप्र श्रीवसुभूति और पृथिवीदेवी के पुत्र थे। तीनों ने भगवान का शिष्यत्व स्वीकार लिया था / तीनों के गौतमगोत्रीय होने के कारण ही इन्हें 'गौतम' शब्द से सम्बोधित किया है, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org