________________ इकतालीसवां शतक : उद्देशक 9-28] [755 [4] इसी प्रकार पद्मलेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और वैमानिकदेव, इनमें पद्मलेश्या होती है, शेष में नहीं होती / / 41121-24 / / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / 5. जहा पम्हलेस्साए एवं सुक्कलेस्साए वि चत्तारि उद्देसगा कायवा, नवरं मणुस्साणं गमत्रो जहा प्रोहिउद्देसएसु / सेसं तं चेव / [5] पद्मलेश्या के अनुसार शुक्ल लेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए। विशेष यह है कि मनुष्यों के लिए प्रोधिक उद्देशक के अनुसार पाठ जानना चाहिए / शेष सब पूर्ववत् / / 6. एवं एए छसु लेस्सासु चउवीसं उद्देसगा। ओहिया चत्तारि। सव्वेए अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० // 41 / 25-28 // // इकचत्तालीसइमे सए : नवमाइअट्ठावीसइमपज्जंता उद्देसगा समता // [6] इस प्रकार इन छह लेण्यानों-सम्बन्धी चौबीस उद्देशक होते हैं तथा चार प्रौधिक उद्देशक हैं / ये सभी मिल कर अट्ठाईस उद्देशक होते हैं। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / / / 41 / 25-28 / / // इकतालीसवां शतक : नौवें से अट्ठाईसवें उद्देशक तक समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org