SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2917
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवमाइबारसमपज्जतेसु बेइंदियमहाजम्मसएसु पढमाइएक्कारसपज्जता उद्देसगा नौवें से बारहवें द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक के पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त नौवें से बारहवें द्वीन्द्रियमहायग्मशतक तक पूर्वशतकानुसार निर्देश 1. जहा भवसिद्धियसया चत्तारि एवं प्रभवसिद्धियसया वि चत्तारि भाणियव्वा, नवरं सम्मत्त-नाणाणि सव्वेहि नस्थि / सेसं तं चेव / [2] जिस प्रकार भवसिद्धिक (द्वीन्द्रिय जीवों) के चार शतक कहे, उसी प्रकार अभवसिद्धिक (द्वी. जी.) के भी चार शतक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इन सबमें सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होते है / शेप सब पूर्ववत् ही है। 2 एवं एयाणि बारस बेदियमहाजुम्मसयाणि भवति / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। / / बंदियमहाजुम्मसया समत्ता / / 36-12 / / // छत्तीसतिम सयं समत्तं // 36 // [2] इस प्रकार ये बारह द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक होते हैं / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // छत्तीसवां शतक : बारह द्वीन्द्रिय महायुग्मशतक समाप्त // / / छत्तीसवाँ शतक सम्पूर्ण / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy