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________________ 700 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [8 प्र.] भगवन् ! चरम-चरमसमय के कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [8 उ.] गौतम ! इनका समग्र निरूपण चौथे उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए / / 1-10 // 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'०, इत्यादि पूर्ववत् / 6. चरिम-अचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! को उववज्जति ? जहा पढमसमय उद्देसमो तहेव निरवसेसं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ // 35 // 1 // 11 // एवं एए एक्कारस उद्देसगा। पढमो ततियो पंचमओ य सरिसगमगा, सेसा अट्ट सरिसगमगा, नवरं चउत्थे अट्टमे दसमे य देवा न उववज्जंति, तेउलेसा नत्थि / // पंचतीसइमे सए : पढमं एगिदियमहाजुम्मसयं समत्तं / / 35-1 // [प्र.] भगवन् ! चरम-अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? / [9 उ.] गौतम ! इनका समस्त कथन प्रथमसमयउद्देशक के अनुसार करना चाहिए / / 1-11 / / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि कथन पूर्ववत् / इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हैं। इनमें से पहले, तीसरे और पांचवें उद्देशक के पाठ एकसमान हैं। शेष पाठ उद्देशक एकसमान पाठ वाले हैं। किन्तु चौथे, (छठे), पाठवें और दसवें उद्देशक में देवों का उपपात तथा तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिए। विवेचन-निष्कर्ष और आशय प्रस्तुत प्रकरण में अप्रथमसमय से लेकर चरम-अचरमसमय तक कुल दस उद्देशक कहे गए हैं। प्रथम उद्देशक का निरूपण पहले किया जा चुका है। ये ग्यारह उद्देशक कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय के हैं, परन्तु विभिन्न विशेषणों से युक्त हैं यथा-(१) प्रथमसमय, (2) अप्रथमसमय, (3) चरमसमय, (4) अचरमसमय, (5) प्रथम-प्रथमसमय, (6) प्रथमअप्रथम-समय, (7) प्रथम-चरम-समय, (8) प्रथम-अचरम-समय, (6) चरम-चरम-समय, (10) चरम-अचरम-समय / यहाँ अप्रथम-समय से चरम-अचरम-समय तक (तीसरे से। का निरूपण किया ग अप्रथमसमय०--जिनको उत्पन्न हुए द्वितीयादि समय हो गए हैं और जो संख्या में कृतयुग्मकृतयुग्म हैं, ऐसे एकेन्द्रिय जीवों को 'अप्रथमसमय-कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय' कहा गया है। इनका कथन सामान्य एकेन्द्रियों के समान है, इसी कारण यहाँ प्रथम उद्देशक का प्रतिदेश किया गया है / ___ चरमसमय०-चरमसमय शब्द यहाँ एकेन्द्रियों के मरणसमय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। उस (चरम) समय में रहे हुए कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रियों का कथन प्रथमसमय के एकेन्द्रियोद्देशक के समान है, उनमें जो दस बोलों की भिन्नता बताई गई है, वह यहाँ भी समझनी चाहिए। इनमें एक विशेषता यह है कि इनमें देव आकर उत्पन्न नहीं होते। इसलिए इस उद्देशकान्तार्गत इनमें तेजोलेश्या का कथन नहीं करना चाहिए। एकेन्द्रियों में तेजोलेश्या तभी पाई जाती है जब उनमें देव उत्पन्न होते हैं। 1. अधिकपाठ-यहाँ 'चउत्थे' के बाद 'छठे' अधिकपाठ मिलता है। ---सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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