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________________ [भ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___ गोयमा ! एगसमइएण वा, दुसभइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विगहेणं उववज्जेज्जा। [55-1 प्र. भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव, लोक के पूर्वीय-चरमान्त में मरणसमदघात करके लोक के पूर्वीय-चरमान्त में अपर्याप्त सक्षमपश्वी कायिक-रूप पूर्वीय-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपश्वी कायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है, तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [55-1 उ.] गौतम ! वह एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है / [2] से केणठेणं भंते ! एवं बच्चति--एगसमइएण वा जाव उववज्जेज्जा ? एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीयो पन्नत्ताश्रो, तं जहा-उज्जुायता जाब प्रद्धचक्कवाला / उन्जुआयताए सेढीए उववज्जमाणे एगसमइएणं विग्गहेणं उबबज्जेज्जा; एगतोवंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा; दुहओवंकाए सेढोए उववज्जमाणे जे भविए एगयरंसि अणुसेढिं उववज्जित्तए से गं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, जे भविए विसेदि उववज्जित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा; से तेणठेणं जाव उववज्जेज्जा। [55-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह एक समय की यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [55-2 उ.] गौतम ! मैंने सात श्रेणियां बताई हैं / यथा- ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाला। यदि ऋज्वायता श्रेणी से उत्पन्न होता है तो एक समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है / यदि एकतोवका श्रेणी से उत्पन्न होता है तो दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। यदि उभयतोवका श्रेणी से उत्पन्न होता है तो जो एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) से उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और यदि वह बिश्रेणी से उत्पन्न होने योग्य है तो वह चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इसी कारण से हे गौतम ! पूर्वोक्त कथन किया गया है कि वह एक समय की यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है / 56. एवं अपज्जत्तओ सुहुमपुढविकाइनो लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहतो लोगस्स पुरस्थिमिल्ले चेव चरिमंते अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसु य सुहुमपुढविकाइएसु, अपज्जत्तएस पज्जत्तएसु य सुहमनाउकाइएसु, अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसु य सहुमतेउक्काइएसु, अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसु य सहमवाउकाइएसु, अपज्जत्तएस पज्जत्तएसु य बायरवाउकाइएस, अपज्जत्तएस पज्जत्तएस य सुहुमवणस्सतिकाइएसु,अपन्जत्तएसु पज्जसएस य बारसम वि ठाणेस एएणं चेव कमेणं भाणियन्वो। [56] इसी प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का लोक के पूर्वीय-चरमान्त में (मरण)समुद्घात करके लोक के पूर्वीय-चरमान्त में ही अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मअप्कायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मतेजस्कायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मवायुकायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त बादरवायुकायिक जीवों में तथा अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों में, इस प्रकार इन अपर्याप्त और पर्याप्त-रूप बारह ही स्थानों में इसी क्रम से उपपात कहना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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