________________ चौतीसवां शतक : उद्देशक 1] [41-1 उ.] गौतम ! वह दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [2] से केणठेणं० ? एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीयो पन्नत्ताश्रो, तं जहा-उज्जुमायता जाव श्रद्धचक्कवाला / एगतोयंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, दुहतोवंकाए सेढीए उवयज्जमाणे तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, से तेणठेणं० / [41-2 प्र.] भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है, कि वह दो या तीन समय की ? इत्यादि प्रश्न / [41-2 उ.] गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ कही हैं। यथा---ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाल / यदि वह जीव एकलोवका श्रेणी से उत्पन्न होता है, तो दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है, यदि वह उभयतोव काश्रेणी से उत्पन्न होता है, तो तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है / इसी कारण से हे गौतम ! पूर्वोक्त कथन किया गया है / 42. एवं पज्जत्तएसु वि, बायरतेउकाइएसु वि उववातेयम्वो। बाउकाइय-वणस्सतिकाइयत्ताए चउक्कएणं भेएणं जहा पाउकाइयत्ताए तहेव उववातेयव्यो। [42] इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीव में भी उपपात जानना चाहिए। जिस प्रकार अप्कायिक-रूप में उत्पन्न होने की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार वायुकायिक और वनस्पतिकायिक रूप में भी चार-चार भेद से उत्पन्न होने की वक्तव्यता कहनी चाहिए। 43. एवं जहा अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयस्त गमओ भणियो एवं पज्जत्समुहुमपुढविकाइयस्स वि भाणियन्वो, तहेव वीसाए ठाणेसु उववातेयन्वो। [43] जिस प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक का गमक कहा है, उसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक का गमक भी कहना चाहिए और उसी प्रकार (पूर्वोक्त) बीस स्थानों में उपपात कहना चाहिए। 44. अहेलोयखेतमालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहयनो एवं बायरपुढविकाइयस्स वि अपज्जत्तगस्स पज्जत्तगस्स य भाणियरवं / [44] जिस प्रकार अधोलोकक्षेत्र की बसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्धात करके यावत् विग्रहगति में उपपात कहा है, उसी प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक के उपपात का भो कथन करना चाहिए। 45. एवं अाउकाइयस्स चउन्विहस्स वि भाणियव्वं / [45] चारों प्रकार के अप्कायिक जीवों का कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। 46. सुहुमतेउकाइयस्स दुविहस्स वि एवं चेव / [46] पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्मतेजस्कायिक जीव के उपपात का कथन भी इसी प्रकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org