________________ 664] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [38-1 प्र.) भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जोब अधोलोक क्षत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्व लोक की त्रसनाड़ी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य है तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? 638-1 उ.] गौतम ! वह तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [2] से केणठेणं भंते ! एवं बच्चति-तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा? गोयमा ! अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुहमपढविकाइयत्ताए एगपयरम्मि अणुसे दि उवज्जित्तए से गं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, जे भविए विसेदि उववज्जित्तए से णं च उसमइएणं विग्गहेणं उबवज्जेज्जा / से तणठेणं नाव उववज्जेज्जा / [38-2 प्र. भगवन् ! एंमा कहने का क्या कारण है कि वह जीव तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? (38.2 उ.] गौतम ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पथ्वीकायिक जीव अधोलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके ऊर्ध्वलोकक्षेत्र की सनाडी के बाहर क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक के रूप में एक प्रतर में अनुश्रेणी (ममश्रेणी) में उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है और जो विश्रेणी में उत्पन्न होने योग्य है, वह चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है / इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा है कि यावत् वह तीन या चार समय को विग्रहगति से उत्पन्न होता है। 39. एवं पज्जत्तसुहमपुढ विकाइयत्ताए वि। [36] इसी प्रकार जो पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होता है, उसके विषय में भी समझना चाहिए। 40. जाव पज्जत्तसुहुमतेउकाइयत्ताए / [40] इसी भांति जो पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक-रूप से यावत् उत्पन्न होता है, उसके विषय में भी जानना चाहिए / 41. [1] अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! अहेलोग जाव समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गणं उववज्जेज्जा? गोयमा! दुसमइएण वा, तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा। 41-1 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके मनुष्यदोत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्काथिक-प से उत्पन्न होने योग्य हो तो भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org