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________________ 656} [व्याख्याप्राप्तिसूत्र 2-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह एक समय, दो समय अथवा तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [2-2 उ.] हे गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ कही हैं / यथा-(१) ऋज्वायता, (2) एकतोवा, (3) उभयतोवक्रा, (4) एकतः खा, (5) उभयत: खा, (6) चक्रवाल और (7) अर्द्धचक्रवाल / ____ जो पृथ्वीकायिक जीव ऋज्वायता श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह एक समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है, जो एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है, जो उभयतोवका श्रेणी से उत्पन्न होता है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण से हे गौतम ! यह कहा जाता है कि वह एक, दो या तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है / / 1 / / 3. अपज्जत्तसुहमपुड विकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोह णित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चथिमिले चरिमंते पज्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विगहेणं उववज्जेज्जा ? / गोयमा ! एगसमइएण वा दुसमइएण वा, सेसं तं चैव जाव सेतेणठेणं आव विगहेणं उववज्जेज्ना / / [3 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव जो रत्नप्रभापृथ्वी के पर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम दिशा के चरमान्त में पर्याप्त सक्ष्मपृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [3 उ.] गौतम ! वह एक समय, दो समय अथवा तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है, इत्यादि शेष सब पर्ववत कहना यावत इस कारण......"तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है. यहाँ तक कहना चाहिए। / / 2 / / 4. एवं अपज्जत्तसुहमपुढविकाइनो पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहणावेत्ता पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते बायरपुढविकाइएसु प्रपज्जत्तएसु उधवातेयव्यो।३। [4] इसी प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात से मृत्यु प्राप्त कर पश्चिम दिशा के चरमान्त में बादर अपर्याप्त पृथ्वीकायिक-रूप से उपपात कहना चाहिए / / 3 / / 5. ताहे तेसु चेव पज्जत्तएसु / 4 / [5] और वहीं (पूर्ववत् ) पर्याप्त रूप से उपपात कहना चाहिए // 4 / / 6. एवं प्राउकाइएसु वि चत्तारि पालावगा-सुहमेहि अपज्जत्तएहि 1, ताहे पज्जत्तएहि 2, बादरेहि अपज्जत्तएहिं 3, ताहे पज्जत्तरहि उववातेयन्यो 4 / [6] इसी प्रकार अप्कायिक जीव के भी चार आलापक कहने चाहिए। यथा---(१) सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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