________________ एगतीसइमं सयं-उववायसयं इकतीसवां शतक-उपपातशतक पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक क्षुद्रयुग्म-सम्बन्धी क्षुद्रयुग्म : नाम और प्रकार 1. रायगिहे जाव एवं वयासो-~[१] राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-- 2. [1] कति णं भंते खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता? गोयमा ! चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा - कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलियोए। [2-1 प्र.] भगवन् ! क्षुद्रयुग्म कितने कहे हैं ? [2.1 उ.] गौतम ! क्षुद्रयुग्म चार कहे हैं / यथा--कृतयुग्म, योज, द्वापरयुग्म और कल्योज / [2] से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ–चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा कडजुम्मे जाव कलियोगे? गोयमा ! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अबहीरमाणे चउपज्जवसिए से तं खुड्डागकडजुम्मे / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए से तं खुड्डागतेयोगे। जे णं रासो चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए से तं खुड्डागदावरजुम्मे / जे णं रासो चउक्कएणं अवहारेणं प्रवहीरमाणे एगपज्जवसिए से तं खुड्डागकलियोगे / से तेणठेणं जाक कलियोगे। [2-2 प्र.] भगवन् ! यह क्यों कहा जाता है कि क्षुद्र युग्म चार हैं, यथा-कृतयुग्म यावत् कल्योज? [2-2 उ.] गौतम ! जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में चार रहें, उसे क्षुद्र कृतयुग्म कहते हैं / जिस राशि में चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में तीन शेष रहे, उसे क्षद्रत्र्योज कहते हैं। जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में दो शेष रहें, उसे क्षद्वापर युग्म कहते हैं और जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में एक ही शेष रहे, उसे क्षुद्रकल्योज कहते हैं / इस कारण से हे गौतम ! यावत् कल्योज कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org