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________________ एगतीसइमं उववायसयं, बत्तीस इमं उव्वट्टणासयं इकतीसवाँ उपपातशतक और बत्तीसवाँ उद्वर्तनशतक प्राथमिक * भगवतीसूत्र के यह इकतीसवाँ और बत्तीसवां शतक हैं। * इकतीसवें शतक का नाम उपपातशतक है और बत्तीसवें शतक का नाम उद्वर्तनशतक है। * ये दोनों शतक जीवों के जन्ममरण से सम्बन्धित हैं। उपपात का अर्थ है-उत्पत्ति या जन्म और उद्वर्तन का अर्थ है-मरण या उक्तभव (या शरीर) से निकलना / * संसार में प्राणियों के लिए उत्पत्ति भी दुःखदायी है और मृत्यु या उद्वर्तना भी दुःखदायी है / जिसकी उत्पत्ति होगी, उस सांसारिक जीव की उद्वर्त्तना (मृत्यु) निश्चित है, अवश्यम्भावी है / परन्तु सामान्य प्राणी अथवा प्रज्ञजन इसे दृष्टि से अोझल कर देते हैं। वे जन्म को तो महत्त्व पूर्ण मानते हैं, मरण को दु:खद / * भगवान महावीर ने तो दोनों को अपने प्रवचन में दुःखदायी कहा है "जम्म दुक्खं जरा दुक्खं रोगा या मरणाणि य / अहो दुक्खो हु संसारे, तस्थ किस्संति जंतवो // " अर्थात -जन्म, जरा, रोग प्रौर मरण ये सब दुःखमय हैं। यह संसार ही दुःखरूप है, किन्तु अज्ञानी प्राणी इसमें मोहवश फंसकर क्लेश पाते हैं। ये दोनों शतक साधक की आँखों को खोल देने वाले है। इकतीसवें शतक में बताया गया है कि जीव किस-किस गति और योनि से आकर वर्तमान भव में उत्पन्न होता है ? एक समय में कितने जीवों का और किस-किस प्रकार से उत्पाद होता है ? लेश्या आदि अमुक विशेषणों से युक्त जीव कहाँ से, कितनी संख्या में और कैसे-कैसे उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि तथ्य इकतीसवें शतक में प्रकट किए हैं। * बत्तीसवें शतक में इकतीसवें शतक के क्रम से ही उद्वर्तन (मरण) की चर्चा की गई है कि अमुक जीव अपने वर्तमान भव से मर कर तुरंत कहाँ, किस योनि-गति में और कैसे जाता है ? इत्यादि। * दोनों ही शतकों में क्षुद्रयुग्म के माध्यम से चर्चा-विचारणा की गई हैं / * दोनों शतकों में से इकतीसव तथा बत्तीसवें में प्रत्येक में 28-28 उद्देशक है, जिनकी परिगणना शास्त्रकार ने की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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