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________________ तोसवां शतक : उद्देशक 1] [555 28. पुढविकाइया णं भंते ! कि किरियवादी० पुच्छा / गोयमा ! नो किरियावादी, अकिरियावादो वि अन्नाणियवादी वि, नो वेणइयवादी / एवं पुढविकाइयाणं जं अस्थि तत्थ सम्वत्थ वि एयाइं दो मझिल्लाइं समोसरणाइं जाव अणागारोवउत्त त्ति। [28 प्र.] भगवन् ! क्या पृथ्वोकायिक क्रियावादी होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [28 उ.] गोतम ! वे क्रियावादी नहीं हैं, वे प्रक्रियावादी भो हैं, अज्ञानवादी भी हैं, किन्तु वे विनयवादी नहीं है। इसी प्रकार पृथ्वी कायिक आदि जीवों में जो पद संभावित हों, उन सभी पदों में (इन चारों में से) ये जो दो मध्यम समवसरण (अक्रियावादी और अज्ञानवादी) हैं, ये ही यावत् अनाकारोपयुक्त' पृथ्वीकायिक पर्यन्त होते हैं। 26. एवं जाव चरिदियाणं, सम्बहाणेसु एयाई चेव मझिल्लगाई दो समोसरणाई। सम्मत-नाणेहि वि एयाणि चेव मज्झिल्लगाई दो समोसरणाई। [26] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जोवों तक सभी पदों में मध्य के दो समवसरण होते हैं / इनके सम्यक्त्व और ज्ञान में भी ये दो मध्यम समवसरण जानने चाहिए। 30. पंचेंदियतिरिक्खजोगिया जहा जोवा, नवरं जं अस्थि तं भाणियत्वं / [30] पञ्वेन्द्रियतिर्यवयोनिक जीवों का कथन ओधिक जीवों के समान है, किन्तु इनमें भी जिसके जो पद हों, वे कहने चाहिए। 31. मणुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेसं / [31] मनुष्यों का समग्र कथन औधिक जीवों के सदृश है। 32. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा। [32] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक जीवों का कथन असुरकुमारों के समान जानना चाहिए। विवेचन स्पष्टीकरण-(१) पृथ्वोकायिक प्रादि जोव मिथ्यादष्टि होने से वे प्रक्रियावादी अज्ञानवादी होते हैं। यद्यपि उनमें वचन (वाणो) का अभाव होने से वाद नहीं होता, तथापि उस-उस वाद के योग्य परिणाम होने से वे अक्रियावादी और अज्ञानवादी कहे गए हैं। उनमें विनय. वाद के योग्य परिणाम न होने से वे विनयवादी नहीं होते / (2) पृथ्वीकायिकादि के योग्य सलेश्यत्व, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या और तेजोलेण्या तथा कृष्णपाक्षिकत्वादि जो स्थान हैं, उन सभी में प्रक्रियावादी और अज्ञानवादी समवसरण होते हैं। इस प्रकार चतुरिन्द्रिय कार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जानना चाहिए किन्त यहाँ इतना समझना आवश्यक है कि क्रियावाद और विनयवाद विशिष्ट सम्यक्त्वादि परिणाम के सद्भाव में होते हैं। इसलिए यद्यपि द्वीन्द्रिय प्रादि जीवों में सास्वादनगुणस्थान को प्राप्ति के समय सम्यक्त्व और ज्ञान का अंश होने से उनमें क्रियावादिता युक्तियुक्त है, तथापि थे क्रियावादी और विनयवादी नहीं कहलाते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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