________________ 5 ] {व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र से क्रियावादी हैं। यही कारण है कि सम्यग्दृष्टि के योग्य अलेश्यी, सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी यावत् केवलज्ञानी, नोसंजोपयुक्त, अवेदी, अकषायी और अयोगी को यहाँ क्रियावादी कहा है तथा मिथ्यादष्टि के योग्य कृष्णपाक्षिक, मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी, यावत् विभंगज्ञानी अादि स्थानों का प्रक्रियावाद आदि तीन समवसरणों में समावेश किया गया है। मिश्रदृष्टि साधारण परिणाम वाला होने से उसकी गणना न तो क्रियावादी (ग्रास्तिक) में होती है और न ही अक्रियावादी (नास्तिक) में किन्तु वे अज्ञानवादी और विनयवादी ही होते हैं। इनके अतिरिक्त शेष सबकी गणना (मिश्रदृष्टि वाले को छोड़ कर) तीनों समवसरणों में होती है।' चौवीस दण्डकों में ग्यारह स्थानों द्वारा क्रियावादादिसमवसरण-प्ररूपरणा 22. नेरइया णं भंते ! कि किरियावादी० पुच्छा / गोयमा! किरियावादी वि जाव वेणइयवादी वि / 22 प्र.] भगवन् ! नैरधिक क्रियावादी हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / 22 उ. गौतम ! वे क्रियावादी भी होते हैं, प्रक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी भी। 23. सलेस्सा णं भंते ! नेरइया कि किरियावादी० ? एवं चेव / (23 प्र.] भगवन् ! सलेश्यी नैरयिक क्रियावादी होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् समग्र प्रश्न / 23 उ.] गौतम ! के क्रियावादी भी यावत् विनयवादी भी हैं। 24. एवं जाव काउलेस्सा। [24] इसी प्रकार यावत् कापोतलेश्यो नै रयिकों तक पूर्ववत जानना चाहिए / 25. कण्हपक्खिया किरियाविज्जिया। [25] कृष्णपाक्षिक नैरयिक क्रियावादी नहीं हैं। 26. एवं एएणं कमेणं जहेव जच्चेव जोवाण वत्तवया सच्चेव नेरइयाण वि जाव प्रणागारोव उत्ता, नवरं जं अस्थि तं भाणियव्वं, सेसं न भण्णति / [26] इसी प्रकार और इसो क्रम से जिस प्रकार सामान्य जीवों के सम्बन्ध में वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार और उसी क्रम से यहाँ भी यावत् अनाकारोपयुक्त तक वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि जिसके जो हो, वही कहना चाहिए, शेष (न हो उसे) नहीं कहना चाहिए। 27. जहा नेरतिया एवं जाव थणियकुमारा। 627] जिस प्रकार नै रयिकों का कथन किया है, उसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त कथन करना चाहिए। 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 944 (1) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7.6609 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org