________________ तीसइमं सयं : समवसरण-सयं तीसवां शतक : समवसरण-शतक पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक समवसरण और उसके चार भेद 1. कति णं भंते ! समोसरणा पन्नता? गोयमा चत्तारि समोसरणा पन्नता, तं जहा-किरियावादी अकिरियावादी प्रनाणियवादी वेणइयवादी। [1 प्र.] भगवन् ! समवसरण कितने कहे हैं ? [1 उ.] गौतम ! समवसरण चार कहे हैं। यथा-१. क्रियावादी, 2. अक्रियावादी, 3. अज्ञानवादी और 4. विनयवादी। विवेचन समवसरण का स्वरूप --कथञ्चित् तुल्यता के कारण नाना परिणाम वाले जीव जिसमें (जिस विषय में) रहते हैं-समवसृत (जहाँ एकत्रित) होते हैं, उसे अर्थात्-भिन्नभिन्न मतों या दर्शनों को समवसरण कहते हैं। अथवा परस्पर भिन्न क्रियावाद आदि मतों में, कथञ्चित् समानता होने से कहीं-कहीं वादियों का अवतरण समवसरण कहलाता है।' समवसरण के चार भेद हैं -क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी। इन मतों के सम्बन्ध में विस्तृत तथ्य प्राप्त नहीं होते / 2 / क्रियावादी आदि को पुरातन और प्रस्तुत व्याख्या-(१) क्रियावादी-कर्ता के बिना क्रिया सम्भव नहीं। इसलिए क्रिया का जो कर्ता-अात्मा है, उसके अस्तित्व को मानने वाले क्रियावादी 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 944 (1) समवसरन्ति नानापरिणामा जीवा: कञ्चित्तुल्यतया येषु मतेषु तानि ममवसरणानि / (2) समयमृतयो वाऽन्योऽन्यभिन्नेषु क्रियावादादिमतेषु कञ्चित्तुल्यत्वेन क्वचिद् केपांचित् बादिनामवतारा: समवसरणानि / 2. (क) श्रीमद् भगवतीसूत्र, चतुर्थ खण्ड (गुजराती अनुवाद), पृ. 302 (ख) प्राचारांगवत्ति अ.१, उ. 1, पत्र 16 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org