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________________ एगूणतीसइमं सयं : कम्मपट्ठवण-सयं उनतीसवां शतक : कर्मप्रस्थापनशतक पढमो उद्देसमो : प्रथम उद्देशक जीव और चौवीस दण्डकों में समकाल-विषमकाल की अपेक्षा पापकर्मवेदन के प्रारम्भ और अन्त का निरूपण 1. [1] जीवा णं भंते ! पावं कम्म कि समायं पटुविसु समायं निविसु, समायं पट्टविसु विसमायं निर्विसु; विसमायं पविसु समायं निट्ठविसु; विसमायं पटुविसु विसमायं निट्ठविसु ? गोयमा ! अत्थेगइया समायं पविसु, समायं निर्विसु, जाव प्रत्थेगतिया विसमायं पट्टविस, विसमायं निविसु / 1-1 प्र.] भगवन् ! (1) जीव पापकर्म का बेदन एक साथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं ? (2) अथवा एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न-भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? या (3) भिन्न-भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ? (4) अथवा भिन्न-भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न-भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? 1-1 उ.] गौतम ! कितने ही जीव (पापकर्मवेदन) एक साथ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं यावत् कितने ही जीव विभिन्न समय में प्रारम्भ करते और विभिन्न समय में समाप्त करते हैं। [2] से केणटुणं भंते ! एवं बुच्च–अत्थेगइया समायं० ?' तं चेव / गोयमा! जीवा चउन्विहा पन्नत्ता, तं जहा–प्रत्थेगइया समाउया समोक्वनगा, प्रत्थेगइया समाउया विसमोववनगा, अत्थेगइया विसमाउया समोववनगा, प्रत्येगइया विसमाउया विसमोववनगा / तस्थ णं जे ते समाउया समोववनगा ते णं पावं कम्मं समायं पविस, समायं निविस / तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववनगा ते णं पावं कम्मं समायं पटुविसु, विसमायं निविस / तत्थ णं जे ते विसमाउया समोववनगा ते णं पावं कम्मं विसमायं पाविस, समायं निद्रावस / तत्थ पंजे ते विसमाउया विसमोववन्नगा तेणं पावं कम्म विसमायं पट्टविस, विसमायं नियुविसु / से तेणठेणं गोयमा ! 0, तं चेव / / [1-2 प्र.] भगवन ! ऐसा क्यों कहा कि कितने ही जीव पापकर्मों का वेदन एक साथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं, इत्यादि ? 1-2 उ.] गौतम ! जीव चार प्रकार के कहे हैं / यथा-(१) कई जीव समान प्रायु वाले हैं और समान (एक साथ) उत्पन्न होते हैं, (2) कई जीव समान आयु वाले हैं, किन्तु विषम भिन्न-भिन्न) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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