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________________ एगारसमो उद्देसओ : ग्यारहवाँ उद्देशक अचरम नैरयिकादि को पापकर्मादि-बन्ध अचरम चौवीस दण्डकों में पापकर्मादिबन्ध-प्ररूपणा 1. अचरिमे णं भंते ! नेरतिए पावं कम्मं कि बंधी० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगइए०, एवं जहेव पढमुद्देसए तहेव पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा सम्वत्थ जाव पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं / (1 प्र.] भगवन् ! क्या अचरम नैरयिक ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि पूर्ववत् चतुभंगात्मक प्रश्न / 1 उ. गौतम ! किसी ने पापकर्म बांधा था, इत्यादि प्रथम उद्देशक में कहे अनुसार यहाँ भी सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक पर्यन्त कहना चाहिए। 2. अचरिमे गं भंते ! मणुस्से पावं कम्मं कि बंधी० पुच्छा। गोयमा ! प्रत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति; अत्थेगतिए बंधी, बंधति, न बंधिस्सति; प्रत्थेगतिए बंधी, न बंधति, बंधिस्सति / [2 प्र.] भगवन् ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बांधा था ? इत्यादि पूर्ववत् चतुभंगात्मक प्रश्न / 2 उ.] गौतम ! (1) किसी मनुष्य ने बांधा था, बांधता है और बांधेगा, (2) किसी ने बांधा था. बांधता है और आगे नहीं बांधेगा. (3) किसी मनुष्य ने बांधा था, नहीं बांधता है और प्रागे बांधेगा / (इसी प्रकार अचरम मनुष्य में ये तीन भंग होते हैं / ) 3. सलेस्से गं भंते ! अचरिमे मणुस्से पावं कम्मं कि बंधी० ? / एवं चेव तिमि भंगा चरिमविहणा भाणियम्वा एवं जहेव पढमुद्देसए, नवरं जेसु तत्थ वीससु पवेसु चत्तारि भंगा तेसु इहं प्रादिल्ला तिप्नि भंगा भाणियध्वा चरिमभंगबज्जा; अलेस्से केवल नाणी य अजोगी य, एए तिन्नि वि न पुचिछज्जति / सेसं तहेव ! 3 प्र. भगवन् ! क्या सलेश्यी अचरम मनुष्य ने पापकर्म बांधा था? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [3 उ.] गौतम ! पूर्ववत् अन्तिम भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग प्रथम उद्देशक के समान यहां कहने चाहिए / विशेष यह है कि जिन बीस पदों में वहाँ चार भंग कहे हैं उन पदों में से यहाँ अन्तिम भंग को छोड़ कर आदि के तीन भंग कहने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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