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________________ छव्वीसवां शतक : उद्देशक 1) 151 80. तेउलेस्से० पुच्छा। गोयमा ! बंधी, न बंधति, बंधिस्सति / 160 प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्यी पृथ्वी कायिक जीव ने प्रायुष्यकर्म बांधा था? इत्यादि प्रश्न। {80 उ.] गौतम ! (तेजो० पृ० ने) बांधा था, बांधता नहीं है और बांधेगा, यह केवल तृतीय भंग पाया जाता है। 21. सेसेसु सम्वेतु चत्तारि भंगा। | 81] शेष सभी स्थानों में चार-चार भंग कहने चाहिए / 82. एवं प्राउकाइय-वणस्सइकाइयाण वि निरवसेसं / [82] इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के विषय में भी सब कहना चाहिए। 83. तेउकाइय-वाउकाइयाणं सम्वत्थ वि पढम-ततिया भंगा। [83] तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों के सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भग होते हैं। 54. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं पि सम्वत्थ वि पढम-ततिया भंगा, नवरं सम्मत्ते नाणे प्राभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ततियो भंगो। [4] द्वीन्द्रिय, तृतीय और चतुरिन्द्रिय जीवों के सभी स्थानों में प्रथम और तृतीय भंग होते हैं। विशेष यह है कि इनके सम्यक्त्व, ज्ञान, ग्राभिनिबोधिज्ञान और श्रुतज्ञान में एकमात्र तृतीय भंग होता है। 85. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढम-ततिया भंगा। सम्मामिच्छत्ते ततियचउत्था भंगा। सम्मत्ते नाणे आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे, एएसु पंचसु वि पएसु बितियविहूणा भंगा। सेसेसु चत्तारि भंगा। [85] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक में तथा कृष्णपाक्षिक में प्रथम और तृतीय भंग पाये जाते हैं। सम्यगमिथ्यादृष्टि जीव में तृतीय और चतुर्थ भंग होते हैं / सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान, इन पांचों पदों में द्वितीय भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं / शेष सभी पूर्ववत् (चार भंग) जानना। 86. मणुस्साणं जहा जीवाणं, नवरं सम्मत्ते, प्रोहिए नाणे, प्राभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, एएसु बितियविहूणा भंगा सेसं तं चेव / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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