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________________ 528] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र द्वितीय-स्थान : सलेश्य-अलेश्य जीवों की अपेक्षा पापकर्मबन्ध-निरूपण __5. सलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्म कि बंधी, बंधिस्सति; बंधी, बंधति, न बंधिस्सति० पुच्छा / गोयमा ! प्रत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति ; प्रत्यैगतिए०, चउभंगो। [5 प्र.] भगवन् ! सलेश्य जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा ? अथवा बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा? इत्यादि चारों प्रश्न / [5 उ.] गौतम ! किसी लेश्या वाले जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा; इत्यादि चारों भंग जानने चाहिए / 6. काहलेस्से णं भंते ! जीवे पावं कम्मं कि बंधी०, पुच्छा। गोयमा ! अस्थगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति ; प्रत्थेगतिए बंधी, बंधति, न बंधिस्सति / [6 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी जीव पहले पापकर्म बांधता था, बांधता है और बांधेगा? इत्यादि चारों प्रश्न / [6 उ.] गौतम ! कोई (कृष्णलेश्यी जीव) पापकर्म बांधता था, बांधता है और बांधेगा; तथा कोई (कृष्णले श्यी) जीव (पापकर्म) बांधता था, बांधता है, किन्तु आगे नहीं बांधेगा। 7. एवं जाव पम्हलेस्से / सम्वत्थ पढम-बितिया भंगा। [7] इसी प्रकार (नीललेश्यी से लेकर) यावत् पद्मलेश्या वाले जीव तक समझना चाहिए। सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग जानना / / 8. सुक्कलेस्से जहा सलेस्से तहेव चउभंगो। [8] शुक्ललेश्यी के सम्बन्ध में सलेश्यजीव के समान चारों भंग कहने चाहिए। 9. अलेस्से णं भंते जीवे पावं कम्म कि बंधी० पुच्छा। गोयमा ! बंधी, न बंधति, न बंधिस्सति / [9 प्र.] भगवन् ! अलेश्यी जीव ने क्या पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [9 उ.] गौतम ! उस जीव ने पूर्व में पापकर्म बांधा था, किन्तु वर्तमान में नहीं बांधता और बांधेगा भी नहीं। विवेचन--स्पष्टीकरण–सलेश्य, कृष्णादिलेश्यायुक्त और अलेश्य इन तीनों प्रकार के जीवों के सम्बन्ध में कालिक पापकर्मबन्ध-सम्बन्धी वक्तव्यता इस द्वार में है। सलेश्यी जीव में चारों भंग पाए जाते हैं, क्योंकि शुक्ललेश्यी जीव भी पापकर्म का बन्धक होता है / कृष्णादि पांच लेश्या वाले जीवों में पहला और दूसरा, ये दो भंग ही पाए जाते हैं, क्योंकि उन जीवों के वर्तमानकाल में मोहनीयरूप पापकर्म का क्षय या उपशम नहीं है, इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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