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________________ 518] | ঘামাসঙ্গি 10] इसी प्रकार एकेन्द्रिय से अतिरिक्त, यावत् वैमानिक तक, (सभी जीवों के विषय में जानना)। एकेन्द्रियों के विषय में भी उसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि उनकी विग्रहगति उत्कृष्ट चार समय की होती है / शेष पूर्ववत् / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-निष्कर्ष-पाठवें उद्देशक में 10 सूत्रों द्वारा चौवीस दण्डकगत जीवों की उत्पत्ति, शीघ्रगति, गति का विषय, परभवायुष्यबन्ध, गति का कारण, प्रात्मकर्म एवं प्रात्मप्रयोग से उत्पत्ति आदि की प्ररूपणा की गई है। प्रतिदेश--जीवों की उत्पत्ति, शीघ्र गति एवं शीघ्र गति के विषय में श. 14, उ. 1, सू. 6 में विस्तृत विवेचन है, तदनुसार यहाँ भी समझ लेना चाहिए।' कठिन शब्दार्थ सेयकाले भविष्यकाल में / करणोवाएणं-क्रियाविशेषरूप उपाय अथवा कर्मरूपसाधन (हेतु) द्वारा पुरिमं भवं--प्राप्तव्य भव / पथए-प्लवक-कूदने वाला। पवमाणेकूदता हुआ। // पच्चीसवां शतक : आठवा उद्देशक सम्पूर्ण / 20 1. (क) भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 928 (ख) वियाहपण्णत्तिसुत्तं भाः 2, पृ. 1069 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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