________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 8] [57 [4 प्र.] भगवन् ! वे जीव परभव की आयु किस प्रकार बांधते हैं ? [4 उ.] गौतम ! वे जीव अपने अध्यवसाय योग (अध्यवसायरूप मन आदि के व्यापार) से निष्पन्न करणोपाय (कर्मबन्ध के हेतु) द्वारा परभव की आयु बांधते हैं। 5. तेसि णं भंते ! जीवाणं कहं गती पवत्तइ ? गोयमा ! आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं; एवं खलु तेसि जीवाणं गती पवत्तति / [5 प्र.] भगवन् ! उन जीवों की गति किस कारण से प्रवृत्त होती है ? / [5 उ.] गौतम! उन जीवों की आयु के क्षय होने से, भव का क्षय होने से और स्थिति का क्षय होने से उनकी गति प्रवृत्त होती है। 6. ते णं भंते ! जीवा कि प्रातिडीए उववज्जंति, परिड्ढीए उववज्जति ? गोयमा ! प्रातिड्ढीए उववज्जंति, नो परिड्ढीए उववज्जति / [6 प्र.] भगवन् ! वे जीव आत्म-ऋद्धि (अपनी शक्ति) से उत्पन्न होते हैं या पर की ऋद्धि (दूसरों की शक्ति ) से? [6 उ.] गौतम ! वे जीव आत्म-ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं, पर-ऋद्धि से नहीं। 7. ते गं भंते ! जीवा कि प्रायकम्मुणा उववज्जंति, परकम्मुणा उववज्जति ? गोयमा ! आयकम्मुणा उववज्जति नो परकम्मुणा उववज्जति / / 7 प्र.] भगवन् ! वे जीव अपने कर्मों से उत्पन्न होते हैं या दूसरों के कर्मों से ? [7 उ.] गौतम ! वे जीव अपने कर्मो से उत्पन्न होते हैं, दूसरों के कर्मों से नहीं। 8. ते णं भंते ! जीवा कि प्रायप्पयोगणं उववज्जति, परप्पयोगेणं उववज्जति ? गोयमा ! प्रायप्पयोगणं उववज्जंति, नो परप्पयोगेणं उववज्जति / [8 प्र.] भगवन् ! वे जीव अपने प्रयोग से उत्पन्न होते हैं या परप्रयोग से ? [8 उ.] गौतम ! वे अपने प्रयोग (व्यापार) से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं / 6. असुरकुमारा णं भंते ! कहं उवबज्जति ? जहा नेरतिया तहेव निरवसेसं जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जति / [9 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार कैसे उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [6 उ.] गौतम ! जिस प्रकार नैरयिकों (के उत्पन्न होने पादि) का कहा, उसी प्रकार यहाँ यावत् 'यात्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं', यहाँ तक कहना चाहिए / 10. एवं एगिदियवज्जा जाय वेमाणिया। एंगिदिया एवं चेव, नवरं चउसमइनो विगहो। सेसं संवेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति / // पंचवीसहमे सए : अट्ठमो उद्देसमो समतो // 25-8 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org