________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 7] और बढ़ाने वाले हैं। इन्हीं से जीव विविध प्रकार के दुःख भोगता है, इत्यादि पाश्रवों से होने वाले अपायों का चिन्तन करना, 'अपायानुप्रेक्षा' है / ध्यान के भेद तथा प्रशस्त-अप्रशस्त-विवेक इस प्रकार चारों ध्यानों के कुल मिलाकर 48 भेद होते हैं। आर्तध्यान के 8, रौद्रध्यान के 8, धर्मध्यान के 16 और शुक्लध्यान के 16, यो कुल मिलाकर 48 भेद हुए। चारों ध्यानों में धर्मध्यान और शुक्लध्यान प्रशस्त हैं, शुभ हैं, निर्जरा के कारण हैं तथा प्रार्तध्यान और रौद्रध्यान अप्रशस्त हैं अशुभ हैं, कर्मबन्ध अोर संसार की वृद्धि के कारण हैं, अतः त्याज्य हैं। तप के प्रकरण में दो अप्रशस्त ध्यानों का वर्णन करने का कारण यह है कि प्रशस्त ध्यानों का आसेवन करने से और अप्रशस्त ध्यानों को छोड़ने से तप होता है। इसलिए त्याज्य होते हए भी वर्णन किया गया है। व्युत्सर्ग के भेद-प्रभेदों का निरूपण 250. से कि तं विप्रोसागे? विओसग्गे दुविधे पन्नत्ते, तं जहा-दवविप्रोसग्गे य भावविओसग्गे य / [250 प्र.] (भंते ! ) व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? [250 उ. (गौतम ! ) व्युत्सर्ग दो प्रकार का है / यथा-द्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग / 251. से कि तं दव्वविप्रोसम्गे? दव्वविप्रोसग्गे चउम्विधे पन्नत्ते, तं जहा -गणविप्रोसग्गे सरीरविप्रोसग्गे उवधिविप्रोसग्गे भत्त-पाणविप्रोसग्गे / से तं दवविभोसग्गे। [251 प्र.] (भगवन् ! ) द्रव्य व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? [251 उ. (गौतम !) द्रव्यव्युत्सर्ग चार प्रकार का कहा है / यथा—गणव्युत्सर्ग, शरीरव्युत्सर्ग, उपधिव्युत्सर्ग और भक्तपानव्युत्सर्ग / यह द्रव्यव्युत्सर्ग का वर्णन हुआ। 252. से कि तं भावविभोसणे? भावविभोसग्गे तिविहे पन्नते, तं जहा-फसायविओसगे संसारविओसग्गे कम्मविप्रोसग्गे। [252 प्र.] (भगवन् ! ) भावव्युत्सर्ग कितने प्रकार का कहा है ? 252 उ. (गौतम ! ) भावव्युत्सर्ग तीन प्रकार का कहा गया है / यथा---(१) कषायव्युत्सर्ग, (2) संसारव्युत्सर्ग और (3) कर्मव्युत्सर्ग। 253. से कितं कसायविप्रोसग्गे? कसायविओसग्गे चउविधे पन्नत्ते, तं जहा-कोहविप्रोसग्गे माणविओसग्गे मायाविनोसम्गे लोभविप्रोसग्गे / से तं कसायविनोसग्गे / 1. (क) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3520 से 3531 (ख) भगवती. (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भा. 16, . 475 से 490 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org