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________________ का चय-उपचय 23, अपवर्तन 23, संक्रमण 23, निधत्त करना 23. निकाचित करना 24, चलितप्रचलित 24, देव-असुरकुमार चर्चा 24, असुरकुमार देवों की स्थिति (प्रायु), श्वास-निःश्वास, प्राहार आदि विषयक प्रश्नोत्तर 24-25, नागकुमार चर्चा 26, सुपर्णकुमार से लेकर स्तनित कुमार देवों के विषय में स्थिति आदि संबंधी प्रालायक 27, नागकुमार देवों की स्थिति के विषय में स्पष्टीकरण 27, पृथ्विीकाय आदि स्थावर चर्चा 27, पंच स्थावर जीवों की स्थिति आदि के विषय में प्रश्नोत्तर 29, पृथ्वीकायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति 29, विमात्रा-ग्राहार, विमात्रा श्वासोच्छ्वास 29, व्यापात, 29, स्पर्शेन्द्रिय से आहार कैसे ? 29, शेष स्थाबरों की उत्कृष्ट स्थिति 29, द्वीन्द्रियादि त्रस-चर्चा 29, विकलेन्द्रिय जीवो की स्थिति 31, असंख्यात समय वाला अन्तमुहर्त 31, रोमाहार 31, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों के संबंध में पालापक 32, मनुष्य एवं देवादि विषयक चर्चा 32, पंचेन्द्रिय तियन, मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों की स्थिति आदि का वर्णन 33, पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति 33, तिर्यचों और मनुष्यों के आहार की अवधि किस अपेक्षा से 33, वैमानिक देवों के श्वासोच्छवास एवं आहार के परिमाण का सिद्धान्त 33, मुहर्त पृथक्त्व उत्कुष्ट और जघन्य 33, जीवों की प्रारंभ विषयक चर्चा 33, चौबीस दंडकों में आरंभ प्ररूपणा 35, सलेश्य जीवों में प्रारंभ प्ररूपणा 35, विविध पहलुओं से प्रारंभी-अनारंभी विचार 35, प्रारंभ का अर्थ 35, अल्पारंभी परारंभी, तदुभयारंभी (उभयारंभी) अनारंभी, शुभ योग, लेश्या और संयत-असंयत शब्दों का अभिप्राय 36, भव की अपेक्षा से ज्ञानादिक की प्ररूपणा 36, भव की अपेक्षा से ज्ञानादि संबंधी प्रश्नोत्तर 36, चारित्र, तप और संयम परभव के साथ नहीं जाते 36, असंवुड-संवुड विषयक सिद्धता की चर्चा 37, असंवत और संवत अनगार के होने आदि से संबंधित प्रश्नोत्तर 38, असंवत और संवत का अभिप्राय 38, दोनों में अन्तर 38, 'सिझद' आदि पाँच पदों का अर्थ और क्रम 38, अंसवत अतगार : चारों प्रकार के बंध का परिवर्धक 39, 'अणा इयं के वत्तिकार के अनुसार चार रूपान्तर और उनका अभिप्राय 39, 'अणवदागं' के तीन रूपान्तर और अर्थ 39, 'दोहमद्ध' के दो अर्थ 39, असंयत जीव की देवगति विषयक चर्चा 39, बाणन्यंतर देवलोक. स्वरूप 40, असंयत जीवों की गति एवं वाणव्यंतर देवलोक 41, कठिन शब्दों की व्याख्या 41, दोनों के देवलोक में अन्तर 41, बाणभ्यंतर शब्द का अर्थ 41, गौतम स्वामी द्वारा प्रदशित बन्दन-बहुमान 41 / द्वितीय उद्देशक-दुःख (सूत्र 1-22) 42-63 उपक्रम 42, जीव के स्वकृत दुःखवेदन सम्बन्धी चर्चा 42, आयुवेदन सम्बन्धी चर्चा 43, स्वकृत दु:ख एवं आयु के वेदन संबंधी प्रश्नोत्तर 43, स्वकृतक कर्मफल भोग सिद्धान्त 43, चौबीस दण्डक म समानत्व चर्चा (नरयिक विषय) 44, नैरयिकों के आहार, शरीर, उच्छ्वास-नि:श्वास, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया, आयूष्य के समानत्व-असमानत्व संबंधी प्रश्नोत्तर 44-47, असुरकुमारादि समानत्व चर्चा 47, नागकुमारों से स्तनितकुमार तक समानत्व संबंधी आलापक 47, पृथ्वीकाय प्रारि समानत्व चर्चा 47, विकलेन्द्रिय समानत्व संबंधी आलापक 48, पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की क्रिया में भिन्नता 48, मनुष्य देव विषयक समानत्व चर्चा 49, चौबीस दण्डक में लेश्या की अपेक्षा समाहारादि विचार 50, नारक आदि चौबीस दण्डकों के संबंध में समाहारादि दशद्वार सम्बन्धी प्रश्नोत्तर 51, छोटा-बड़ा शरीर आपेक्षिक 51, प्रथम प्रश्न याहार का, किन्तु उत्तर शरीर का 51, अल्पशरीर वाले से महाशरीर वाले का आहार अधिक : यह कथन प्रायिक 51, बड़े शरोर वाले की वेदना और श्वासोच्छ्वास-मात्रा अधिक 51, नारक : अल्पकर्मी एवं महाकर्मी 52, संज्ञिभूतअसंज्ञिभूत के चार अर्थ 52, क्रिया 52, आयु और उत्पत्ति की दृष्टि से नारकों के चार भंग 52, असुर कुमारों का आहार मानसिक 53, असुरकुमारों का आहार और श्वासोच्छ्वास 53 असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या का [26] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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