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________________ 454] [प्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 135 प्र.] भगवन् ! सामायिकसयत में कितने ज्ञान होते हैं ? [35 उ.] गौतम ! उसमें दो, तीन या चार ज्ञान होते हैं। इस प्रकार जैसे (उ. 6, सू. 44 में उक्त) कषायकुशील में कहा है, वैसे ही यहाँ चार ज्ञान भजना (विकल्प) से समझने चाहिए। 36. एवं जाव सुहमसंपराए। [36] इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्परायसयत तक जानना चाहिए। 37. अहक्खायसंजतस्स पंच नाणाई भयणाए जहा नाणुद्देसए (स० 8 उ०२ सु० 106) / / 37] यथाख्यातसंयत में ज्ञानोद्देशक (शतक 8, उ. 2) के अनुसार पांच ज्ञान विकल्प (भजना) से होते हैं। 38. सामाइयसंजते णं भंते ! केवतियं सुयं अहिज्जेज्जा ? गोयमा जहन्नेणं अट्ठ पवयणमायानो जहा कसायकुसोले (उ० 6 सु० 50) / (38 प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? [38 उ.] गौतम ! वह जघन्य आठ प्रवचनमाता का अध्ययन करता है, इत्यादि (उ. 6, सू. 50 में उक्त) कषायकुशील के वर्णन के समान जानना चाहिए। 36. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। [39] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसयत के विषय में भी कहना चाहिए / 40. परिहारविसुद्धियसंजए० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं नवमस्स पुवस्स तइयं प्रायारवत्थु, उक्कोसेणं असंपुण्णाई दस पुधाई अहिज्जेज्जा। [40 प्र.भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? [40 उ.] गौतम ! वह जघन्य नौवें पूर्व की तीसरी आचारवस्तु तक तथा उत्कृष्ट दस पूर्व असम्पूर्ण तक अध्ययन करता है / 41. सुहुमसंपरायसंजए जहा सामाइयसंजए। 141] सूक्ष्मसम्परायसंयत की वक्तव्यता सामायिकसयत के समान जानना / 42. अहक्खायसंजए० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठ पक्ष्यणमायाप्रो, उक्कोसेणं चोद्दसपुत्वाई अहिज्जेज्जा, सुतयतिरित्ते वा होज्जा / [दारं 7] / [42 प्र. भगवन् ! यथाख्यातसंयत कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? {42 उ.] गौतम ! वह जघन्य अष्ट प्रवचनमाता का और उत्कृष्ट चौदहपूर्व तक का अध्ययन करता है अथवा वह श्रुतव्यतिरिक्त (केवली) होता है। [सप्तम द्वार] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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