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________________ 42) व्याख्याप्राप्त सूत्र 130. नियंठे णं. पुच्छा। गोयमा ! नो सकसायी होज्जा, अफसायो होज्जा। {130 प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ सकषाय होता है या अकषाय ? [130 उ.] गौतम ! वह सकषाय नहीं होता, किन्तु अपाय होता है। 131. जदि अकसायी होज्जा कि उवसंतकसायी होज्जा, खोकसायी होज्जा ? गोयमा ! उवसंतकसायी बा होज्जा, खोणकसायी वा होज्जा / [131 प्र.] भगवन् ! यदि निर्गन्थ अकषाय होता है तो क्या उपशान्तकषाय होता है, मथवा क्षीणकषाय ? [131 उ.] गौतम ! वह उपशान्तकपाय भी होता है और क्षीणकषाय भी। 132. सिणाए एवं चेव, नवरं नो उबसंतकसायी होज्जा, खीणकसायो होज्जा। [वारं 18] / 132] स्नातक के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए / विशेष यह है कि वह उपशान्तकषाय नहीं होता, किन्तु क्षीणकषाय होता है / [अठारहवाँ द्वार] विवेचन-सकषाय या प्रकषाय ?--पुलाक से लेकर प्रतिसेवनाकुशील तक क्रोधादि चारों होते हैं, क्योंकि उनके कषायों का उपशम या क्षय नहीं होता। कषायकुशील में जो चार, तीन, दो और एक कषाय का कथन किया है, उसका तात्पर्य यह है कि जब वह चार कषाय में होता है, तब उसके संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चारों कषाय होते हैं। उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी में जब संज्वलन क्रोध का उपशम या क्षय हो जाता है, तब उसके तीन कषाय होते हैं। जब संज्वलन मान का उपशम या क्षय हो जाता है तब दो कषाय होते हैं और जब संज्वलन माया का उपशम या क्षय हो जाता है, तब सूक्ष्मसम्पराय नामक दसवें गुणस्थान में एक मात्र संज्वलन लोभ ही शेष रह जाता है। निर्ग्रन्थ और स्नातक दोनों अकषाय होते हैं।' उन्नीसवाँ लेश्याद्वार : लेश्याओं की प्ररूपरणा 133. पुलाए गं भंते ! कि सलेस्से होज्जा, मलेस्से होज्जा ? गोयमा ! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा / {133 प्र.] भगवन् ! पुलाक सलेश्य होता है या अलेश्य ? 1133 उ.] गौतम ! वह सलेश्य होता है अलेश्य नहीं / 134. जदि सलेस्से होज्जा से गं भंते ! कतिसु लेसासु होज्जा ? गोयमा ! तिसु विसुखलेसासु होज्जा, तं जहा-तेउलेसाए, पम्हलेसाए, सुक्कलेसाए / [134 प्र. भगवन् ! यदि वह सलेश्य होता है तो कितनी लेश्यामों में होता है ? 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 901 / / (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भाग 7, पृ. 3356 . .. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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