________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6 ] 1122 प्र. भगवन् ! पुलाक साकारोपयोगयुक्त होता है या अनाकारोपयोगयुक्त ? [122 उ.] गौतम ! वह साकारोपयोगयुक्त भी होता है और अनाकारोपयोगयुक्त भी होता है। 123. एवं जाव सिणाए / [दारं 17] / [123] इसी प्रकार यावत् स्नातक तक कहना चाहिए / [सत्तरहवाँ द्वार अठारहवाँ कषायद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कषाय-प्ररूपरगा 124. पुलाए णं भंते कि सकसायी होज्जा, अकसायी होना ? गोयमा ! सफसायो होज्जा, नो अकसायी होज्जा। [124 प्र.] भगवन् ! पुलाक सकषाय होता है या अकषाय ? [124 उ.] गौतम ! वह सकषाय होता है, अकषाय नहीं। 125. जइ सकसायी से णं भंते ! कतिसु कसाएसु होज्जा ? गोयमा ! चउसु, कोह-माण-माया-लोभेसु होज्जा / [125 प्र.] भगवन् ! यदि वह सकषाय होता है, तो कितने कषायों में होता है ? . [125 उ.] गौतम ! वह क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारों कषायों में होता है / 126. एवं बउसे वि। [126] इसी प्रकार बकुश के विषय में भी जानना चाहिए / 127. एवं पडिसेवणाकुत्तीले वि। [127] यही कथन प्रतिसेवनाकुशील के विषय में समझना चाहिए / 128. कसायकुसीले पं० पुच्छा। गोयमा! सकसायी होज्जा, नो प्रकसायी होज्जा / 1128 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील सकषाय होता है या अकषाय ? (128 उ. गौतम ! वह सकषाय होता है, अकषाय नहीं / 126. जति सकसायी होज्जा से गं भंते ! कतिसु कसाएसु होज्जा? गोयमा! चउसु वा, तिसु वा, दोसुवा, एगम्मि वा होज्जा। चउसु होमाणे चउसु संजलणकोह-माण-माया-लोभेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु संजलणमाण-माया-लोभेसु होज्जा, दोसु होमाणे संजलणमाया-लोभेसु होज्जा, एगम्मि होमाणे एगम्मि संजलणे लोभे होज्जा। [129 प्र. भगवन् ! यदि बह सकषाय होता है, तो कितने कषायों में होता है ? [126 उ.] गौतम ! वह चार, तीन, दो या एक कषाय में होता है। चार कषायों में होने पर संज्वलन के क्रोध, मान, माया और लोभ में होता है। तीन कषाय में होने पर संज्वलन के मान, माया और लोभ में होता है। दो कषायों में होने पर संज्वलन के माया और लोभ में होता है और एक कषाय में होने पर संज्वलन लोभ में होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org