________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6] ज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं। यदि तीन ज्ञान हों तो प्राभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होते हैं। 42. एवं बउसे वि। [42] इसी प्रकार बकुश के विषय में जानना चाहिए। 43. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। |43] प्रतिसेवनाकुशील के विषय में भी यही वक्तव्यता जाननी चाहिए। 44. कसायकुसीले णं० पुच्छा / ___ गोयमा ! दोसु वा तिसु वा चउसु वा होज्जा। दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाणसुयनाणेसु होज्जा। तिसु होमाणे तिसु प्राभिनिवोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु अहवा तिसु प्राभिनिबोहियनाण-सुयनाण-मणपज्जवनाणेसु होज्जा / चउसु होमाणे चउसु आभिनिबोहियनाणसुयनाण-ओहिनाण-मणपज्जवनाणेसु होज्जा। [44 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील में कितने ज्ञान होते हैं ? 44 उ.] गौतम ! कषायशील में दो, तीन या चार ज्ञान होते हैं। यदि दो ज्ञान हों तो प्राभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं, तीन ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होते हैं / अथवा आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और मनःपर्यवज्ञान होते हैं। यदि चार ज्ञान हों तो प्राभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्यवज्ञान होते हैं। 45. एवं नियंठे वि। [45] इसी प्रकार निर्ग्रन्थ के विषय में जानना चाहिए / 46. सिणाए णं० पुच्छा। गोयमा ! एगम्मि केवलनाणे होज्जा। [46 प्र.] भगवन ! स्नातक में कितने ज्ञान होते हैं ? [46 उ.] गौतम ! स्नातक में एकमात्र केवलज्ञान ही होता है / 47. पुलाए णं भंते ! केवतियं सुर्य अहिज्जेज्जा? गोयमा ! जहन्नेणं नवमस्स पुण्यस्स ततियं आयारवत्थु, उषकोसेणं नव पुस्वाइं अहिज्जेज्जा। [47 प्र.] भगवन् ! पुलाक कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? [47 उ.] गौतम ! वह जघन्यत: नौवें पूर्व की तृतीय प्राचारवस्तु तक का और उत्कृष्टत: पुर्ण नौ पूवों का अध्ययन करता है। 48. बउसे० पुच्छा / गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठ पवयणमायाओ, उक्कोसेमं दस पुवाई अहिज्जेज्जा / [48 प्र.] भगवन् ! बकुश कितने श्रुत पढ़ता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org