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________________ पच्चीसदा शतक : उ शक! विवेचन--किसमें कौन-सा संयम ?--पांच प्रकार के निग्रन्थों में से पुलाक, बकुश एवं कषायकुशील सामायिक और छेदोपस्थापनिक इन दो प्रकार के संयम ( चारित्र ) में, कषावकुशील सामायिक से लेकर सूक्ष्मसम्पराय तक में, निर्गन्थ एवं स्नातक दोनों एकमात्र यथाख्यातसंयम (चारित्र) में होते हैं।' छठा प्रतिसेवनाद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में मूल-उत्तरगुरणप्रतिसेवन-अप्रतिसेवन-प्ररूपरणा 35. [1] पुलाए णं भंते ! कि पडिसेवए होज्जा, अपडिसेवए होज्जा? गोयमा ! पडिसेवए होज्जा, नो अपडिसेवए होज्जा। [35-1 प्र.। भगवन् ! पुलाक प्रतिसेवी ( दोषों का सेवन करने वाला ) होता है या अप्रतिसेवी? [35-1 उ.] गौतम ! पुलाक प्रतिसेवी होता है, अप्रतिसेवी नहीं। [2] जदि पडिसेवए होज्जा कि मूलगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा ? गोयमा ! मूलगुणपडिसेवए वा होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए वा होज्जा। मूलगुणपडिसेवमाणे पंचण्हं आसवाणं अन्नयरं पडिसेवेज्जा, उत्तरगुणपडिसेवमाणे दसविहस्स पच्चक्खाणस्स अन्नयर पडिसेवेज्जा। [35-2 प्र.] भगवन् ! यदि वह प्रतिसेवी होता है, तो क्या वह मूलगुण-प्रतिसेवी होता है, या उत्तरगुण-प्रतिसेवी? [35-2 उ.] गौतम ! वह मूलगुण-प्रतिसेवी भी होता है, उत्तरगुण-प्रतिसेवी भी। यदि वह मूलगुणों का प्रतिसेवी होता है तो पांच प्रकार के प्राश्रवों में से किसी एक आश्रव का प्रतिसेवन करता है और उत्तरगुणों का प्रतिसेवी होता है तो दस प्रकार के प्रत्याख्यानों में से किसी एक प्रत्याख्यान का प्रतिसेवन करता है। 36. [1] बउसे पं० पुच्छा। गोयमा ! परिसेवए होज्जा, नो अपडिसेवए होज्जा। [36-1 प्र.] भगवन् ! बकुश प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी ? [36-1 उ.] गौतम ! वह प्रतिसेवी होता है, अप्रतिसेवी नहीं / [2] जइ पडिसेवए होज्जा कि मूलगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा ? गोयमा ! नो मूलगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा / उत्तरगुणपउिसेवमाणे दसविहस्स पच्चक्खाणस्स अन्नयरं पडिसेवेज्जा / [36-2 प्र.] भगवन् ! यदि बह प्रतिसेवी होता है, तो क्या मूलगुण-प्रतिसेवी होता है या उत्तरगुण-प्रतिसेवी ? [36-2 उ.] गौतम ! वह मूलगुणों का प्रतिसेवी नहीं होता, किन्तु उत्तरगुण-प्रतिसेवी होता 1. वियाहपण्णत्तिमुत्तं ( मू. पा. टि.) भा. 2, पृ. 1021 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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